राष्ट्रवाद की भावना कई तत्वों से मिलकर बनती है हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक राष्ट्र में यह सभी तत्व विद्यमान हों। राष्ट्र को सुदृढ करने वाले मुख्य तत्व हैं-भौगोलिक एकता, जातीय एकता, विचारों या आदर्शों की एकता या समान संस्कृति, भाषा की एकता, धर्म की एकता तथा विदेशी शासन से मुक्ति। एक मनुष्य समूह का राष्ट्रवाद दूसरे मनुष्य समूह के राष्ट्रवाद से भिन्न होता है।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में हिन्दू समुदाय और मुस्लिम समुदाय राष्ट्रवाद का अभिप्राय विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त करना था। किंतु स्वंतत्रता प्राप्ति के पश्चात इन दोनों समुदायों के लिए राष्ट्रवाद का अभिप्राय बदल गया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में दो प्रकार की राष्ट्रवादी विचारधाराओं ने जन्म लिया, एक-मुस्लिम राष्ट्रवाद औऱ दूसरा हिन्दू राष्ट्रवाद।
हिंदू राष्ट्रवाद का अभिप्राय हिन्दू संस्कृति, सभ्यता, भाषा एवं हिंदुत्व की विचारधारा में निष्ठा रखना तथा महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, जैसे महान हिन्दू योद्धाओं के विचारों और आदर्शों का पालन करते हुए एक सुगठित, सुसंस्कृत और सभ्य राष्ट्र का निर्माण करना है, जिसे आप “हिन्दू राष्ट्र” पुकारते हैं।
जबकि दूसरी ओर मुस्लिम राष्ट्रवाद से अभिप्राय उस राष्ट्रवाद से है जो भारत को दारुल हरब के रुप में देखता रहा है, और वर्षों से इसे दारुल इस्लाम बनाने के प्रयास में निरन्तर लगा हुआ है जिसे आप “इस्लामिक राष्ट्र” पुकार सकते हैं। यह बाबर और तैमूर को अपना आदर्श मानते हैं, औऱ सदैव उनकी विचारधाराओं से प्रभावित रहते हैं।
यहां यह उल्लेखनीय है कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही भारत को अपना देश मानते हैं, और इस पर अपना एकाधिकार बनाये रखने का प्रयास भी करते हैं। देशभक्ति और राष्ट्रवाद दोनों ही समुदायों (हिन्दू-मुस्लिम) में है, लेकिन दोनों के लिए उसके मायने अलग-अलग हैं।
जबकि एक सच्चे भारतीय के लिए राष्ट्रवाद का अभिप्राय राष्ट्रीय एकता में निष्ठा रखना तथा जाति, धर्म , प्रान्त आदि के संकीर्ण दायरों से ऊपर उठकर भारतवर्ष की चतुर्मुखी, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक उन्नति का प्रयास होना चाहिए। सही मायने में राष्ट्रवाद एक ऐसी विचारधारा का नाम है, जो लोगों को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ता है, जो लोगों के आपसी रिश्तों को मधुर बनाता है, न कि एक ऐसी विचारधारा जो लोगों के आपसी रिश्तों में खटास लाता है।