आज 14 सितंबर 2021 को श्री योगी सरकार ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी है। जिसका शिलान्यास प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा थे. जाट परिवार से निकले राजा महेंद्र प्रताप सिंह अपने इलाक़े के काफ़ी पढ़े-लिखे शख़्स तो थे ही, लेखक और पत्रकार की भूमिका भी उन्होंने निभाई. पहले विश्वयुद्ध के दौरान अफ़ग़ानिस्तान जाकर उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई. वे इस निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति थे. एक दिसंबर, 1915 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफ़ग़ानिस्तान में पहली निर्वासित सरकार की घोषणा की थी. निर्वासित सरकार का मतलब यह है कि अंग्रेज़ों के शासन के दौरान स्वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जो काम किया था, वही काम बाद में सुभाष चंद्र बोस ने किया था.
महात्मा गांधी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में कहा था, “राजा महेंद्र प्रताप के लिए 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था. उससे पहले भी उनकी ख्याति का हाल अफ़्रीका में मेरे पास आ गया था. उनका पत्र व्यवहार मुझसे होता रहा है जिससे मैं उन्हें अच्छी तरह से जान सका हूं. उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है.”
दूसरी ओर 18 सितम्बर, 2012 को रामपुर में मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम पर एक विश्वविद्यालय का उदघाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने किया था। इस अवसर पर उनके पिता श्री मुलायम सिंह भी उपस्थित थे। इस वि0वि0 के सर्वेसर्वा श्री आजम खां थे। उन्होंने इसे अपना स्वप्नदर्शी प्रकल्प बताते हुए मौ0 अली जौहर को महान देशभक्त बताया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री महोदय ने भी इस संस्थान को भरपूर धन देने तथा अलीगढ़ वि0वि0 की तरह विश्वविख्यात बनाने की घोषणा भी की थी।
कांग्रेस के इतिहास में जिन अली भाइयों (मोहम्मद अली तथा शौकत अली) का नाम आता है, ये उनमें से एक थे। ख़िलाफ़त आंदोलन के दौरान ही मौहम्मद अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया था। 1930 के दांडी मार्च के समय गांधी जी की लोकप्रियता देखकर मौलाना मौहम्मद अली जौहर ने कहा था कि “व्यभिचारी से व्यभिचारी मुसलमान भी गांधी से अच्छा है।”
1931 में वे मुस्लिम लीग की ओर से लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गये थे। वहीं चार जनवरी, 1931 को उनकी मृत्यु हो गयी। मरने से पहले उन्होंने भारत की बजाय मक्का में दफन होने की इच्छा व्यक्त की थी; पर मक्का ने इसकी अनुमति नहीं दी, अत: उन्हें येरुशलम में दफनाया गया था।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह और मौलाना मौहम्मद अली जौहर के इतिहास को पूरी गम्भीरता से पढ़ने और समझने के पश्चात यह अनुमान लगाना सहज हो जाता है कि दोनों की विचारधाराओं में कितना विरोधाभास था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए 3.8 एकड़ भूमि दान दी थी। जबकि मौलाना मौहम्मद अली जौहर ने भारत में ख़िलाफ़त आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जबकि उस आंदोलन का भारत के स्वतंत्रता से संग्राम से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं था। यहां तक कि ख़ुद मौहम्मद अली जिन्ना ने इस आंदोलन में भारतीयों की दखलंदाजी का खुलकर विरोध किया था और गांधी जी से इसमें भाग न लेने का अनुरोध भी किया था। लेकिन अली बंधुओं ने इसका हर प्रकार से समर्थन किया था।
यहां प्रश्न दो व्यक्तियों की तुलना का नहीं और न ही दो विश्वविद्यालयों की स्थापना का है, परन्तु यहां पर मूल प्रश्न दो विचारधाराओं का है, जिन्हें दो अलग-अलग पार्टियां प्रचारित-प्रसारित कर रही हैं। इस देश का यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां कथित सेक्युलिरिज्म की आड़ में कट्टरपंथी विचारधाराओं को पुष्पित-पल्लवित करने का हरसम्भव प्रयास किया गया।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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