मोहन भागवत का जन्म तो ११ सितम्बर १९५० को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था. लेकिन चंद्रपुर की गलियों में ही खेलते-कूदते हुए उनका बचपन गुजरा है. क्योंकि मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत महाराष्ट्र के सतारा से चंद्रपुर में आकर बस गए थे. मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डाक्टर हेडगेवार के स्कूल के दिनों के दोस्त भी थे यही वजह है कि मोहन भागवत का संघ से पुराना नाता रहा है. उनका संघ से ये तीन पीढ़ियों पुराना कनेक्शन है.
चंद्रपुर से स्कूल की पढाई पास करने के बाद उन्हें शहर के ही जनता कालेज में बीएससी में एडमिशन ले लिया था लेकिन उन्होंने ग्रेजुएशन की ये पढाई बीच में ही छोड़ दी और एक साल बाद ही मोहन भागवत ने चंद्रपुर शहर को भी छोड़ दिया. उनकी जिन्दगी का पहला पड़ाव बना महाराष्ट्र का अकोला शहर. मोहन भगवत ने बीएससी की पढाई छोड़कर अकोला के इसी पंजाबराव कृषि विद्यापीठ में वेटनरी साइंसेज एंड एनीमल हसबेंडरी के कोर्स में दाखिला ले लिया था. स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आगे पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई के लिए इसी कॉलेज में एडमिशन लिया. लेकिन १९७५ में उन्होंने ये पढाई बीच में ही अधूरी छोड़ दी और आरएसएस का दामन थाम लिया.
मोहन भागवत की तीन पीढियां संघ से जुडी रही हैं. मोहन भागवत संघ के स्वयं सेवक थे और उनके पिता मधुकर राव भागवत भी आरएसएस संघ के प्रचारक रहे हैं. उन्होंने गुजरात में प्रान्त प्रचारक के तौर पर भी काम किया है. मोहन भागवत की माता श्रीमती मलातीबाई भी संघ की महिला शाखा सेविका समिति की सदस्य थी. ख़ास बात ये भी है कि मधुकर रावत भागवत ने ही बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी को संघ में दीक्षित किया था.
१९७५ में उन्होंने अचानक बीच में ही पढाई अधूरी छोड़ दी. ये वो दौर था जब देश में आपातकाल लगाया गया. आपातकाल के दौरान मोहन भागवत ने संघ के लिए भूमिग होकर काम किया. १९७७ में उन्हें अकोला में ही संघ का प्रचारक बना दिया गया और बाद में उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्रों का प्रचारक भी बनाया गया.
१९९१ में भागवत संघ कार्यकर्ताओं के शारीरिक प्रक्षिशण के लिए अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख भी बनाये गये और वे इस पद पर १९९० तक रहे. इसी साल उन्हें सारे देश में पूर्णकालिक काम करने वाले संघ कार्यकर्ताओं का प्रभारी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, बना दिया गया इस तरह मोहन भागवत संघ में तेजी से तरक्की की सीढियाँ चढ़ते गये.
मोहन भागवत संघ के प्रचारक है और संघ के परम्परा के मुताबिक उन्होंने शादी भी नहीं की है. साल २००० में जब राजेन्द्र सिंह उर्फ़ रज्जू भय्या और एच पी शेषाद्री ने सर संघ संचालक और संघ सर कार्यवाहक के पद से इस्तीफा दिया तो के एस सुदर्शन संघ के नये सरसंघचालक बने और मोहन भागवत सरकार्यवाहक और आखिरकार साल २१ मार्च २००९ को भागवत संघ के सरसंघचालक बना दिए गए.
-साभार “वेबदुनिया”
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