महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा था, ” इस्लामी इतिहास सशक्त महिलाओं के उदाहरणों से भरा है. हजरत खदीजा तुल कुबरा, पैगंबर एसडब्ल्यूए की पहली पत्नी एक स्वतंत्र और सफल व्यवसायी महिला थीं. हजरत आयशा सिद्दीकी ने ऊंट की लड़ाई लड़ी थी और 13000 सैनिकों के दल का नेतृत्व किया था. मुसलमानों से हमेशा यह साबित करने की अपेक्षा की जाती है कि वे हिंसा के पक्ष में नहीं हैं. मैं देख सकती हूं कि इस धारणा को आगे बढ़ाने के लिए मेरे बयान का इस्तेमाल किस तरह से किया जा रहा है.”
हाल ही में पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि तालिबान एक हकीकत के रूप में उभर रहा है. “अपने पहले शासन के दौरान उनकी मानवाधिकार विरोधी छवि थी. लेकिन वे दुनिया के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकते हैं अगर वो वास्तविक शरिया कानून का पालन करते हैं जिसमें महिलाओं के अधिकार भी शामिल हैं.”
उधर तालिबानी संगठन के प्रवक्ता सईद जकरुल्लाह हाशमी (Sayed Zekrullah Hashimi) ने स्थानीय चैनल टोलो न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘एक महिला कभी मंत्री नहीं बन सकती. ये कुछ ऐसा है, जैसे आपने उसकी गर्दन में वो डाल दिया है, जिसे वो उठा नहीं पा रही. कैबिनेट में महिलाओं का रहना कोई जरूरी नहीं है, उन्हें बच्चे पैदा करने चाहिए.
उल्लेखनीय है कि तालिबान ने कुछ दिन पहले अपनी अंतरिम सरकार का गठन किया है. कैबिनेट में केवल पुरुष सदस्य हैं, इसमें एक भी महिला या अल्पसंख्यक समुदाय या फिर किसी अन्य पार्टी का नेता शामिल नहीं है. कैबिनेट में वैश्विक आतंकियों को उच्च पदों पर रखा गया है. इंटरव्यू के दौरान जब प्रवक्ता से कहा गया कि ‘महिलाएं समाज का आधा हिस्सा हैं.’ तो उसने कहा, ‘लेकिन हम उन्हें आधा हिस्सा नहीं मानते. किस तरह का आधा हिस्सा?
महबूबा मुफ़्ती सहित तमाम तालिबानी प्रेमियों को तालिबानी प्रवक्ता का यह बयान बहुत ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता और सुमैया राना, शोभा डे, स्वरा भास्कर, सहित शाहीन बाग़ में आंदोलनकारी दादियों, तीन तलाक कानून का विरोध करने वाली पर्दानशीन महिलाओं को भी तालिबानी प्रवक्ता के इस बयान पर अपने विचार व्यक्त करने चाहिए। भारत में नारी स्वतंत्रता पर बड़े-बड़े व्याख्यान देने वाले और महिला अधिकारों की बात करने वाले “क्रांतिकारियों” की ज़बान को अब लकवा क्यों मार गया है? जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में ढपली बजाने वाली “जीन्स टॉप गर्ल” और फिल्मों में अंग प्रदर्शन, फूहड़ता और अश्लीलता को बोल्डनेस और आधुनिकता बताने वाले कांगियो, आपियों, वामियों और “बौद्धिक जिहादियों” को समझ लेना चाहिए कि शरिया और इस्लाम के सबसे बड़े पैरोकार बन रहे तालिबान का मानना है कि “औरतें सिर्फ़ बच्चा पैदा करने की मशीन हैं” और इससे ज़्यादा कुछ नहीं।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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