अप्रैल १९४० में दिल्ली में आयोजित स्वतंत्र मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में सभा के सभापति सिंध के खान बहादुर सर मुहम्मद अल्ला बख्श उमर सूमरो ने दिए अपने भाषण में कहा था “भारतीय मुसलमानों का धर्म इस्लाम है, पर उनका वतन हिन्दू है. जो भारतीय मुसलमान भारत से हज करने के लिए मक्का जाते हैं, वहां के अरब लोग उन्हें “हिन्दू” कहकर पुकारते हैं. ईरान, अफगानिस्तान आदि मुस्लिम देशों में भारतीय मुसलमानों को हिन्दुस्तानी या हिन्दू ही कहा जाता है. विदेशीयों की दृष्टि में सब भारतवासी “इन्डियन” हैं, चाहे वे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि किसी भी धर्म के अनुयायी हों. भारत में ९० प्रतिशत मुसलमान पुराने भारतीयों के ही वंशज हैं, उनमें वही रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो हिन्दुओं में है. धर्म परिवर्तन के कारण किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता में परिवर्तन नहीं हो जाता. भारत के मुसलमानों का रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति आदि भी अन्य देशों के मुसलमानों से बहुत भिन्न है” (“भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन” (ज्ञान सदन प्रकाशन) जिसके (लेखक मुकेश बरनवाल) की पुस्तक के पेज ४६४ पर प्रकाशित)
अल्ला बख्श ने दिल्ली की स्वतंत्र मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में जो बातें प्रतिपादित की थीं, वह सच्चाई के बहुत नजदीक है या यूँ कहिये कि एक कडवा सत्य है. जो लोग आज “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगा रहे हैं और वो लोग जो हिंदुस्तान में रहकर भी “जिन्ना” को महापुरुष बताते हैं और शहीद भगत सिंह जैसे महान शहीद को आतंकवादी बताते हैं, वो लोग जो भारत के जाने-माने दुश्मन हाफिज सईद के आतंकवादी सन्गठन की शान में कसीदे पढ़ते हैं, उन लोगों को ये जान लेना चाहिए कि “आज का मुसलमान कल का हिन्दू था” और आज भी भारतीय है और कल भी भारतीय था.