कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी ने अपने राजनीतिक जन्म के पश्चात जब बोलना सीखा तो उन्होंने जो प्रवचन दिए उस पर एक नजर-
मई २०११ में भट्टा परसौल के हिंसक संघर्ष के बाद राहुल गाँधी ने कथित तौर पर कहा था- “मुझे खुद को भारतीय कहने में शर्म आ रही है”.
दिल्ली के विज्ञान भवन में दलित अधिकार सम्मेलन में राहुल गाँधी के
दलितों के उत्थान के लिए “स्केप व वेलोसीटी” सिद्धांत पर बोलते हुए राहुल गाँधी जी ने कहा था- “दलितों को ऊपर उठने के लिए धरती से कई गुना ज्यादा ज्यूपिटर की ‘स्केप वेलोसिटी’ जैसी ताकत की जरूरत है.”
दलितों के उत्थान के लिए “स्केप व वेलोसीटी” सिद्धांत पर बोलते हुए राहुल गाँधी जी ने कहा था- “दलितों को ऊपर उठने के लिए धरती से कई गुना ज्यादा ज्यूपिटर की ‘स्केप वेलोसिटी’ जैसी ताकत की जरूरत है.”
मनमोहन सरकार द्वारा सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता बरक़रार रखने के लिए लाए गए अध्यादेश पर राहुल गाँधी ने एक प्रेस कांफ्रेस में कहा था “मेरी पार्टी और सरकार से इतर मेरी निजी राय है कि अध्यादेश पूरी तरह से बकवास है और इसकी कॉपी को फाडकर फेंक देना चाहिए”.
६ अगस्त २०१३ को इलाहबाद के गोविन्द वल्लभ पन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान के कार्यक्रम में गरीबी पर प्रवचन करते हुए राहुल गाँधी ने कहा था- “गरीबी सिर्फ एक मानसिक स्थिति है. इसका खाना, रूपये जैसी भौतिक वस्तुओं की कमी से मतलब नहीं है”.
राहुल गाँधी ने भारत में कांग्रेस की महत्ता बताते हुए कहा था- “अगर भारत एक कम्प्यूटर है, तो कांग्रेस इसका डिफाल्ट प्रोग्राम है”.
२४ अक्टूबर, २०१३ को इंदौर में एक रैली को सम्बोधित करते हुए राहुल गाँधी ने कहा था- “मुजफ्फरनगर में जो आग लगी है. ऐसे १०-१५ लड़के हैं, मुसलमान लड़के हैं, जिनके भाई-बहनों को मारा गया है. पाकिस्तान के लोग उनसे बात कर रहे हैं. पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी के लोग उन लडकों से बात करना शुरू कर रहे हैं और मैं, उनसे बात कर रहा हूँ, कह रहा हूँ कि इनके बहकावे में मत आओ.”
४ अप्रैल, २०१३ को दिल्ली में सीआईआई के कार्यक्रम में राहुल गाँधी ने कहा था- “मेरे लोगों ने मुझे कहा कि भारत की चीन से तुलना के चक्कर में मत पड़ो लेकिन उनकी बात नहीं मानता. देखिये दो तरह की व्यवस्थाएं हैं, एक केंद्रीकृत और दूसरी विकेंद्रीकृत. चीन में केंद्रीकृत व्यवस्था है, उसे ड्रैगन कहा जाता है. वह साफ़ दिखता भी है. वह बड़ा है, ताकतवर है. दिखता है, बड़े-बड़े ढांचे हैं और लोग हमें हाथी कहते हैं. ड्रैगन के सामने तुलना करने के लिए, लेकिन हम हाथी नहीं हैं, हम मधुमक्खी का छत्ता हैं”. ये बात मजाक लगती है, लेकिन इस बारे में सोचिये. कौन ज्यादा ताकतवर है हाथी या मधुमक्खी का छत्ता?”.
१४ नवम्बर २०११ को फूलपुर से यूपी असेम्बली चुनाव प्रचार अभियान की एक रैली में कथित तौर से कहा था- “यूपी के युवा कब तक आप जायेंगे और पंजाब और दिल्ली में मजदूरी करते रहेंगे. कब तक आप महाराष्ट्र में भीख मांगते रहेंगे.”
१६ अप्रैल, २००७ को एक कार्यक्रम में राहुल गाँधी ने कहा था- “एक बार मेरा परिवार कुछ करने का फैसला कर ले तो उससे पीछे नहीं हटता. चाहे यह भारत की आजादी हो, पाकिस्तान का बंटवारा या फिर भारत को २१ वीं सदी में ले जाने की बात हो.”
साल २०११ में राहुल गाँधी ने राजनीती पर ज्ञान बघारते हुए कहा था- “राजनीति हर जगह है, आपके शर्ट में, पैंट में, हर जगह है.”
जनवरी २०१३ में राहुल ने अपनी ही पार्टी की विशेषता बताते हुए कहा था- “यह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इसमें कोई नियम नहीं हैं. हर दो मिनट में नियम बनते और टूटते हैं. कोई नहीं जानता कि पार्टी में नियम क्या हैं.”
जनवरी २०१३ में राहुल ने अपनी ही पार्टी की विशेषता बताते हुए कहा था- “यह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इसमें कोई नियम नहीं हैं. हर दो मिनट में नियम बनते और टूटते हैं. कोई नहीं जानता कि पार्टी में नियम क्या हैं.”
दिल्ली में हुए ओबीसी के सम्मेलन में ओबीसी वर्ग के उत्थान पर ज्ञान बांचते हुए राहुल गाँधी ने कहा था- “कोका-कोला कम्पनी को शुरू करने वाला एक शिकंजी बेचने वाला व्यक्ति था. वह अमेरिका में शिकंजी बेचता था. पानी में शक्कर मिलाता था. उसके काम का आदर हुआ. उसे पैसा मिला और कोका-कोला कम्पनी बनी”. और आगे कहा- “कोका-कोला की तरह मैकडोनाल्ड कम्पनी का मालिक भी कभी ढाबा चलाता था और आज दुनियाभर में उसका नाम है. भारत में आज एक भी ऐसा ढाबा वाला नहीं है, जो कोका-कोला जैसी बड़ी कम्पनी खड़ा कर सकता है.”
इसी दौरान राहुल गाँधी ने कथित तौर पर कहा था- “आज हिंदुस्तान बीजेपी और आरआरएस का गुलाम बन गया है”.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की जयंती पर दिल्ली में आयोजित एक महिला समारोह में राहुल गाँधी ने कहा था- “जो लोग आपको मां-बहन कहते हैं, मन्दिर जाते हैं, देवी को पूजते हैं वही बस में महिलाओं को छेड़ते हैं.”
स्रोत – १. बीबीसीहिंदी २. आजतक ३. नवभारत टाइम्स