चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्र था. १९३४ में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो में १००० वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं. ये क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था. जैसे भारत को भारतवर्ष कहा जाता है. वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मन्दिर तो नहीं हैं, लेकिन एक हजार वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रान्त में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं. तिब्बत को प्राचीनकाल में त्रिविष्टप कहा जाता था. यह देवलोक और गन्धर्वलोक का हिस्सा था. ५००० से ७०० ईसापूर्व ही चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था, लेकिन इसके पहले आर्यकाल में यह सम्पूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष के नाम से प्रसिद्ध था.
महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष(पुर) प्रान्त का उल्लेख मिलता है. महाभारत के सभापर्व (६८/१५) में श्रीकृष्ण कहते हैं- “हमारे प्राग्यज्योतिषपुर के प्रवास के काल में हमारी बुआ के पुत्र शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था. हालाँकि कुछ विद्वानों के अनुसार प्राग्यज्योतिष आजकल के असम (पूर्वोत्तर के सभी ८ प्रान्त) को कहा जाता था. इन प्रान्तों के क्षेत्र में चीन का भी बहुत कुछ हिस्सा भी शामिल था. रामायण बालकाण्ड (३०/६) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख मिलता है. विष्णु पुराण में इस प्रान्त का दूसरा नाम कामरूप (किंपुरुष) मिलता है. स्पष्ट है कि रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रान्त तक के क्षेत्र प्राग्यज्योतिष ही रहा था. जिसे कामरूप कहा गया. कालान्तर में इसका नाम बदल गया. अर्थशास्त्र के रचियता कौटिल्य ने भी “चीन” शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए ही किया है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रान्त प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा तक फैला हुआ था. अर्थात यह एक अलग ही क्षेत्र था जिसमें वर्तमान चीन का लगभग आधा क्षेत्र आता है.
चीनी यात्री ह्वेनसांग (६२९ ई.) के अनुसार इस कामरूप प्रान्त में उसके काल से पूर्व कामरूप पर एक ही कुल वंश के १००० राजाओं का लम्बे काल तक शासन रहा है.
पुराणों के अनुसार शल्य इसी चीन से आया था, जिसे कभी महाचीन कहा जाता था. माना जाता है कि मंगोल, तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं, यह अय पुरुरवा का पुत्र आयु था. (पुरुरवा प्राचीनकाल में चन्द्रवंशियों का पूर्वज है जिसके कुल में ही कुरु और कुरु से कौरव हुए). इस आयु के वंश में ही सम्राट यदु हुए थे और उनका पौत्र हय था. चीनी लोग इसी हय को ह्यु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं.
महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष(पुर) प्रान्त का उल्लेख मिलता है. महाभारत के सभापर्व (६८/१५) में श्रीकृष्ण कहते हैं- “हमारे प्राग्यज्योतिषपुर के प्रवास के काल में हमारी बुआ के पुत्र शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था. हालाँकि कुछ विद्वानों के अनुसार प्राग्यज्योतिष आजकल के असम (पूर्वोत्तर के सभी ८ प्रान्त) को कहा जाता था. इन प्रान्तों के क्षेत्र में चीन का भी बहुत कुछ हिस्सा भी शामिल था. रामायण बालकाण्ड (३०/६) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख मिलता है. विष्णु पुराण में इस प्रान्त का दूसरा नाम कामरूप (किंपुरुष) मिलता है. स्पष्ट है कि रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रान्त तक के क्षेत्र प्राग्यज्योतिष ही रहा था. जिसे कामरूप कहा गया. कालान्तर में इसका नाम बदल गया. अर्थशास्त्र के रचियता कौटिल्य ने भी “चीन” शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए ही किया है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रान्त प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा तक फैला हुआ था. अर्थात यह एक अलग ही क्षेत्र था जिसमें वर्तमान चीन का लगभग आधा क्षेत्र आता है.
चीनी यात्री ह्वेनसांग (६२९ ई.) के अनुसार इस कामरूप प्रान्त में उसके काल से पूर्व कामरूप पर एक ही कुल वंश के १००० राजाओं का लम्बे काल तक शासन रहा है.
पुराणों के अनुसार शल्य इसी चीन से आया था, जिसे कभी महाचीन कहा जाता था. माना जाता है कि मंगोल, तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं, यह अय पुरुरवा का पुत्र आयु था. (पुरुरवा प्राचीनकाल में चन्द्रवंशियों का पूर्वज है जिसके कुल में ही कुरु और कुरु से कौरव हुए). इस आयु के वंश में ही सम्राट यदु हुए थे और उनका पौत्र हय था. चीनी लोग इसी हय को ह्यु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं.
-साभार “वेबदुनिया”