कल बिजनौर में अंतरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रवीण तोगड़िया का आगमन हुआ। तोगड़िया जी ने करीब 34 मिनट का भाषण दिया। अपने 34 मिनट के भाषण में तोगड़िया जी ने तीन शब्दों को कई बार दोहराया। मोदी, श्रीराम मंदिर और मुस्लिम।
तोगड़िया जी के भाषण में सबसे ख़ास बात यह रही कि उन्होंने केवल श्रीराम मंदिर को ही केंद्रबिंदु बनाए रखा, एससी/एसटी एक्ट, आरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
दूसरी खास बात ये थी कि तोगड़िया जी ने कांग्रेस, समाजवादी, बसपा सहित किसी भी अन्य पार्टी को लपेटे में नहीं लिया। उनका मुख्य विरोध केवल और केवल मोदी जी और भाजपा ही रहे।
तोगड़िया जी के कल के भाषण से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो वह मोदी सरकार की वर्तमान नीतियों से बेहद नाराज़ हैं।
उन्होंने दो विषयों पर अपना भाषण केंद्रित रखा, पहला श्रीराम मंदिर का निर्माण और दूसरा मोदी जी की मुस्लिम समाज से बढ़ती निकटता।
तोगड़िया इस बात से भी खासे नाराज लगे कि मोदी जी ने मुसलमानों के अल्पसंख्यक दर्जे को समाप्त क्यों नहीं किया। दूसरे शब्दों में कहें तो तोगड़िया अपने पूरे भाषण में मोदी नीतियों को ही कोसते नज़र आये।
प्रश्न यह है कि आख़िर तोगड़िया जी को मोदी जी से इतनी नाराज़गी क्यों है?
मोदी और तोगड़िया किसी समय में दो जिस्म और एक जान हुआ करते थे। खुद तोगड़िया जी का भी कहना यही है। राजनीति में भी मोदी और तोगड़िया का खूब साथ रहा, गुजरात में तोगड़िया ही मोदी जी को लाये थे, 1984 में मोदी भाजपा में आये। तोगड़िया मात्र 10 साल की उम्र में ही संघ से जुड़ गए थे। एक लंबे समय तक दोनों एक-दूसरे का पर्याय बनकर रहे। किन्तु आज जबकि मोदी को तोगड़िया जैसे हिंदूवादी वफ़ादार शख़्स की जरूरत है, तब तोगड़िया जी का उनके विरुद्ध होना सचमुच चौंकाने वाला है।
तोगड़िया जी ने एक नारे पर विशेष जोर दिया और वह नारा था “अबकी बार, हिन्दू सरकार”. इस नारे से एक प्रश्न निकल कर आता है कि क्या वर्तमान सरकार जिसे हिंदुत्व का रक्षक बताया जाता है, क्या वह हिन्दू सरकार नहीं है? एक और सवाल यह भी है कि हिन्दू हृदय सम्राट माने जाने वाले तोगड़िया जी मोदी को अपना नेता क्यों नहीं मान रहे? जबकि मोदी जी को हिंदू और हिंदुत्व का रक्षक बताया जाता है.
एक और सवाल कि तोगड़िया किसी अन्य पार्टी या नेता को मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं मान रहे? तोगड़िया ने अभी तक भी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाई है, तब वो किस पार्टी को हिन्दू सरकार बनाने की वक़ालत कर रहे हैं।
एससी/एसटी एक्ट और आरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दों को लेकर तोगड़िया क्यों शांत हैं? मैंने व्यक्तिगत रूप से तोगड़िया जी से करीब 10 मिनट बात की, और उनसे जानना चाहा कि उन्होंने आरक्षण के मुद्दे पर चुप्पी क्यों साध रखी है? और वो किस पार्टी की हिन्दू सरकार बनाने की बात कर रहे हैं? क्या वो कोई नई पार्टी बनाएंगे,और यदि हाँ, तो कब?
लेकिन तोगड़िया जी इन सवालों का जवाब केवल अपनी मुस्कान से देते हुए नज़र आये। आरक्षण के मुद्दे को टालते हुए उन्होंने केवल इतना ही कहा कि हम सबको रोजगार देने के लिए प्रतिबद्ध सरकार चाहते हैं, और उसके लिए स्माल इंडस्ट्रीज के जरिए प्रोत्साहित किया जायेगा।
उन्होंने अपनी दो मांगों को प्रमुखता से रखा, पहला श्रीराम मंदिर का निर्माण और दूसरा मुस्लिम समुदाय का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त किया जाए।
वो इस बात से भी बेहद नाराज नजर आए कि मोदी मस्जिदों में क्यों जा रहे हैं?
कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बार तोगड़िया मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते। हालांकि वह संघ और भाजपा के कोई खास विरोधी नहीं लग रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि एक राष्ट्रीय चैनल को दिए अपने एक इंटरव्यू में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कहा था कि भले ही कोई भी पार्टी सत्ता में आये लेकिन जनता मोदी को प्रधानमंत्री के रुप में नहीं देखना चाहती।
तो क्या प्रवीण तोगड़िया भी अखिलेश यादव की बात को ही पानी दे रहे हैं?
21 अक्टूबर से तोगड़िया ने लखनऊ के लिए कूच का आह्वान किया है, और वहां से अयोध्या कूच के लिए रणनीति तैयार की जाएगी। यह घोषणा मोदी सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली हो सकती है।
परन्तु प्रश्न ज्यों का त्यों है कि आखिर प्रवीण तोगड़िया अपने सबसे करीबी मित्र मोदी से इतना नाराज़ क्यों हैं?
या फिर 2019 के चुनाव की शतरंज पर मोदी और अमित शाह एक नई बिसात बिछा रहे हैं, जिसके लिए प्रवीण तोगड़िया को मोहरा बनाया जा रहा है?
फिलहाल दिल्ली अभी दूर है, और कई और पत्ते खुलना बाकी हैं।
*-मनोज चतुर्वेदी शास्त्री*
स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक-सामाजिक टिप्पणीकार