पूरा नाम – मोरारजी रणछोड़जी देसाई
जन्म – 29 फेब्रुअरी 1896
जन्मस्थान – भदेली ग्राम
पिता – रणछोड़जी देसाई
माता – वाजियाबेन देसाई
विवाह – 1911 में सिर्फ 15 वर्ष की आयु में ही जराबेन से हुआ।
मोरारजी देसाई की जीवनी / Morarji Desai Biography
मोरारजी देसाई भारत के स्वाधीनता सेनानी और 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री थे। मोरारजी देसाई का जन्म बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अभी का गुजरात) के बुलसर जिले के भदेली ग्राम में 29 फेब्रुअरी 1986 को हुआ था। अपने माता-पिता की आठ संतानों में वे सबसे बड़े थे। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे।
देसाई ने सौराष्ट्र के द कुंडला स्कूल, सवार्कुंदला से अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की जिसे आज जे.व्ही. मोदी स्कूल के नाम से भी जाना जाता है। बाद में मुबई के विल्सन कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद वे गुजरात के सिविल सर्विस में शामिल हो गये। मई 1930 में गोदरा के डिप्टी कलेक्टर के पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया।बाद में वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे स्वाधीनता अभियान में शामिल हो गये। आज़ादी के लिये संघर्ष करते समय उन्होंने अपने कई साल जेल में बिताये और वहा रहते हुए उन्होंने अपनेआप की आतंरिक योग्यताओ को विकसित किया। और कुछ ही दिनों में वे लोगो के चहेते स्वाधीनता सेनानी बन गये। और जब 1934 और 1937 के चुनाव हुए तो देसाई ने बॉम्बे प्रेसीडेंसी में रेवेन्यु मिनिस्टर और गृहमंत्री बनकर सेवा की।
उस समय वे ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के बजाय अन्य दल के थे। भारत सरकार के विभिन्न पदों पर वे विराजमान रहे। जैसे की: बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, अर्थमंत्री और डिप्टी प्रधानमंत्री। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देसाई एशिया के दो मुख्य देश भारत और पकिस्तान के बिच शांति चाहते थे।
1974 में भारत के पहले आणविक विस्फोट के समय देसाई ने चाइना और पकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाये रखने में काफी सहायता की। और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे दोनों देशो की सेनाओ का टकराव नही करवाना चाहते थे। परिणामतः 1974 के आणविक कार्यक्रमों में उन्होंने भारत की तरफ से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मोरारजी देसाई अकेले ऐसे भारतीय है जिन्हें पकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पकिस्तान से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें 1990 के एक रंगारंग कार्यक्रम में पकिस्तान के राष्ट्रपति घुलाम इशाक खान ने दिया था।
मोरारजी देसाई का हमेशा से ही यह मानना था की जब तक गावो और कस्बो में रहने वाले गरीब लोग सामान्य जीवन जीनव में सक्षम नही होते, तब तक समाजवाद का कोई मतलब नही है.
मोरारजी ने इस परेशानी को देखते हुए अपने राज्य में किसानो एवं किरायेदारो के हितो में कई महत्वपूर्ण नियम बनाये जिनकी काफी तारीफ़ की जाने लगी थी। उन्होंने केवल नियम ही नही बनाये बल्कि उन्होंने अडिग होकर पूरी इमानदारी से उन नियमो को लागू भी किया। बॉम्बे में उन समय उनके प्रशासन व्यवस्था की काफी तारीफ की गयी थी।
प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई चाहते थे की भारत के लोगो को इस हद तक निडर बनाया जाए की देश में कोई भी व्यक्ति, चाहे वो सर्वोच्च पद पर ही क्यों न हो, अगर कुछ गलत करता है तो कोई भी उसे उसकी गलती का अहसाह दिला सके। वह बार-बार यह कहते थे की,
“देश में कोई भी, यहाँ तक की स्वयं प्रधानमंत्री भी देश के कानून से बड़ा नही होता.”
मोरारजी देसाई ने शायद की कभी अपने जीवन में अपने सिद्धांतो के साथ समझौता किया होगा। मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी वे प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ते थे।
और हमेशा वे यही मानते थे की, “सभी को सच्चाई और विश्वास के अनुसार ही जीवन में कर्म करना चाहिये।”