मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश के गाज़ियाबाद जिले के डासना क्षेत्र में स्थित माता के मंदिर में अज्ञात हमलावरों ने मंदिर परिसर में सो रहे महंत यति नरसिंघा नन्द सरस्वती के शिष्य स्वामी नरेशानन्द सरस्वती पर प्राणघातक हमला कर दिया। इस लेख के लिखे जाने तक घायल साधु महाराज की हालत काफी गम्भीर बताई जा रही है।
इससे पहले भी डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहा नन्द सरस्वती की भी हत्या का प्रयास किया गया था और इसीलिए मंदिर की सुरक्षा के लिए वहां हर समय पुलिस का कड़ा पहरा लगा रहता है। परन्तु इतने कड़े पहरे के बावजूद हमलावरों का अपने काम को अंजाम देकर भाग जाना पुलिस सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है।
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि हिन्दू समाज के एक धर्मगुरू पर इतनी बड़ी विपदा आई है उसके बावजूद भी “बड़े हिन्दू” क्यों चुप्पी साधकर बैठे हैं। बड़ी घटना पर तो “बड़े हिंदुओं” का बोलना बनता है भाई। उधर सत्तात्रेय गोत्र के जेएनयूधारी पोंगापण्डित भी ट्विटर पर दही जमाये बैठे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल साहब ने भी सहानुभूति और सांत्वना के दो शब्द नहीं कहे। उधर प्रबुद्ध वर्ग को अपने पाले में करने के लिए हाथी पर बैठकर प्रदेश भ्रमण पर निकले “हाथी वाले” मिश्र जी भी खामोश से नज़र आ रहे हैं, या फिर जानबूझकर इस सबको नजरअंदाज कर रहे हैं। क्यों?
शायद इसलिए क्योंकि यह सब जानते हैं कि खून में सना हुआ वस्त्र भगवा रंग का है, अगर यह हरे रंग का होता तो शायद अब तक प्रदेश भर में खून के बदले खून की मांग उठ गई होती। इटैलियन मां-बेटियां छातियाँ पीटकर विधवा विलाप करने लगतीं। “पप्पू भैया” भी ट्विटर-ट्विटर खेलने लगते और “बड़े हिन्दू” के समर्थक भी शर्ट उतारकर सड़कों पर आ जाते। “आप” के टिकट ब्लैकमेलर भी स्याही से मुहं काला करवाने आ जाते और साथ में फर्जी दस्तावेजों की पोटली भी उठाए घूमते। गांधीवादी चमचे मीडिया के सामने अहिंसा, प्रेम और शांति का पाठ पढ़ना शुरू कर देते। गाजियाबाद की सड़कों पर हैदराबादी बिरयानी बंटने लगती और धर्म ख़तरे में आ जाता। ढपली गैंग सड़कों पर उतरकर कान फोड़ने लगता, अवार्ड वापसी गैंग अपने पुराने जंक लगे अवार्ड ढूढंने लगता ताकि वापस किए जा सकें। मां की गोद में बैठे एक शायर साहब को अपनी नानी याद आने लगती। झुठेश कुमार भी अपना “झूठ लाइम टाइम” शो चालू कर देते। स्वरा भाड़कर, बरखा हट, अनुराग कचरापेटी, टर्की प्रेमी आमिर pk सहित तमाम “असहिष्णुता बताओ” गैंग छाती पीटने लगता।
कुल मिलाकर हर गांधीवादी, वामपंथी और कथित बुद्धिजीवी को हिन्दू आतंकवाद का ख़तरा पूरे देश पर मंडराते हुए दिखाई देने लगता।
लेकिन हाय री तकदीर, इन बेचारों के हाथ कुछ न लगा, पता नहीं कौन कमबख्त डासना मंदिर में इन “बड़े हिंदुओं” के अरमानों को डस कर भाग गया। काश किसी हरे रंग वाले वस्त्रों पर हाथ साफ किया होता तो चुनावी दाल में और बढ़िया तड़का लगाया जा सकता था।
पर अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।