आजकल अक्सर यह सुनने में आता है कि “ब्राह्मणों ने इस देश का सत्यानाश कर दिया। ब्राह्मण समाज इस बात से सहमत है अथवा असहमत, ये मैं नहीं जानता, किन्तु मैं इस बात से सहमत हूँ कि ब्राह्मणों के भाग्यवादी दृष्टिकोण और अंध आस्था ने ब्राह्मण समाज का जरूर बेड़ागर्क कर दिया।
आज ब्राह्मण समाज नेतृत्वविहीन, कर्महीन और अकर्मण्य हो गया है। अधिकांश ब्राह्मण अवसरवादी, स्वार्थी और चाटुकार हो गया है।
मेरे पास ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि स्वयं ब्राह्मण ही ब्राह्मणों का सबसे बड़ा विरोधी है।
अपने हित को साधने के लिए अपने समाज की अवेहलना करना तो मानो ब्राह्मण धर्म बन गया है। आज लगभग प्रत्येक ब्राह्मण अपनी और केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि में जुटा है, उसे न तो अपने समाज की चिंता है और न ही अपने आने वाली पीढ़ी की कोई चिंता है। उसे केवल अपनी रोजी-रोटी की फ़िक्र है।
हिन्दू धर्म का रक्षक बनने के असफल प्रयास में वह अपने ही समाज का भक्षक बन गया है।
श्रीकृष्ण ने श्रीभगवदगीता में कर्म पर अधिक बल दिया है किंतु चंद सड़कछाप ज्योतिषों और तोताछाप पंडों ने अपनी पीढ़ी को हाथ की चंद आड़ी-तिरछी रेखाओं और जन्मकुंडली के 12 घरों का पिछलग्गू बना दिया है।
हम गीता के कर्म प्रधान उपदेशों को छोड़कर पूर्णतयाः भाग्यवादी बन गये हैं। हमें लगता है कि जो कुछ हो रहा है वह केवल ईश्वर की इच्छा से हो रहा है।
हम इतने कुंठित और भाग्यवादी हो चुके हैं कि हममें अब गलत का विरोध करने की शक्ति भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है।
हम भूतकाल के अभिमान की गठरी अपने सर पर रखकर केवल वर्तमान में जी रहे हैं, हमें न तो अपने भविष्य की चिंता है और न ही अपनी आने वाली पीढ़ी का।
अगर मैं कठोर शब्दों में कहूँ तो आज अधिकांश ब्राह्मण नपुंसक हो चुका है, जो यह मान चुका है कि अब वह किसी अन्याय या आतताई का विरोध नहीं कर सकता। वह कोई क्रांति नहीं कर सकता, उसको लगता है कि सबकुछ ईश्वर के हाथ में है, वह समाज को नहीं बदल सकता, वह किसी परिस्थिति को बदलने में सक्षम नहीं है। उसे हर हाल में जीना है, बस जीना।
धिक्कार है ऐसी सोच पर जो अपने अधिकारों के लिए भी नहीं लड़ सकती, लानत है ऐसे लोगों पर जो अपनी आने वाली पीढ़ी के सुनहरे भविष्य ले लिए अपने आलस्य को नहीं त्याग सकते, कर्महीन मनुष्य नपुंसक होता है।
*जागो ब्राह्मणों जागो, कोई परशुराम, कोई विष्णु, कोई भगवान तुम्हारी रक्षा के लिए नहीं आएगा, तुम्हें अपने अधिकारों के लिए स्वयं लड़ना है। अपने लिए नहीं तो अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए उठो, वरना आने वाली पीढियां तुम्हें धिक्कारेंगी*
*-मनोज चतुर्वेदी शास्त्री*