दूसरों पर पत्थर मारने से पहले “परिवारवादी पार्टी” के मुखिया कम से कम एक बार अपने गिरेहबान में भी तो झाँक कर देख लें-
अब जरा समाजवादी के उस पिछले कार्यकाल पर नजर डालते हैं जिसमें यही अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे. हालाँकि माना जाता है कि उस समय साढ़े चार मुख्यमंत्रियों का राज चल रहा था. जिसमें अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, आजम खान और रामगोपाल यादव का नाम आता है. इसमें रामगोपाल यादव आधे मुख्यमंत्री माने जाते रहे हैं.
प्रतीकात्मक |
अखिलेश यादव के कार्यकाल में दंगों की लिस्ट बहुत बड़ी है. एक रिपोर्ट के अनुसार २०१२ में यूपी में कुल २२७ दंगे हुए, २०१३ में २४७, २०१४ में २४२, २०१५ में २१९, २०१६ में भी १०० के ऊपर दंगे हुए. इनमें सिर्फ धार्मिक दंगे ही नहीं बल्कि जमीन, जाति, गुंडागर्दी के कारण हुए दंगे भी शामिल हैं. लेकिन तीन घटनाएँ सबसे प्रमुख हैं जिनमें पहली घटना मुजफ्फरनगर और दूसरी रामवृक्ष यादव कांड और तीसरी दादरी का अख़लाक़ कांड.
विडम्बना देखिये कि जिस समय मुजफ्फरनगर कांड के पीड़ित टेंटों में भूखे-प्यासे और डरे-सहमे बैठे हुए थे उस समय अखिलेश यादव साहब और कई अन्य समाजवादी नेता सैफई में एक अभिनेता के ठुमकों पर दाद दे रहे थे. गरीबी और भुखमरी के शिकार लोगों को रोता-कलपता छोड़कर जनता की गाढ़ी कमाई को सैफई महोत्सव के नाम पर खुलेआम लुटाया जा रहा था. इस कांड में समाजवादी के एक दिग्गज नेता का भी नाम सामने आया था. लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई.
साभार |
मथुरा के जवाहर पार्क की २८० एकड़ जमीन पर एक तथाकथित बाबा बने एक सिरफिरे रामवृक्ष यादव ने कब्जा कर रखा था. बताया जाता है कि इस कथित बाबा ने एक पूरी सेना बनी रखा थी और इस सेना के पास अति-आधुनिक हथियार भी थे. जब पुलिस टीम ने इस पर हमला किया तब आमने-सामने की लड़ाई में कई पुलिस अधिकारी मारे गए और सैंकड़ों पुलिसकर्मी घायल हो गए. जाहिर है कि इतना बड़ा गिरोह एक दिन में नहीं बनाया जा सकता और न ही जल्दी से अवैध हथियारों का इतना बड़ा जखीरा एकत्र किया जा सकता है. अब प्रश्न ये है कि अखिलेश सरकार क्या कर रही थी? क्या तत्कालीन सरकार का ख़ुफ़िया तंत्र सो रहा था या फिर जानबूझकर नजरंदाज किया गया. रामवृक्ष यादव जैसे खूंखार और सिरफिरे गुंडे पर किसका हाथ था, या फिर जातिवाद का घिनौना खेल खेला जा रहा था?
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प्रतीकात्मक |
बिजनौर के निकटवर्ती एक गाँव पेदा में भी एक जघन्य हत्याकांड हुआ लेकिन सरकार वास्तविकता से कोसों दूर रही. बदायूं में दो नाबालिग लडकियों का बलात्कार हुआ और उसके बाद उनकी नृशंस हत्या कर दी गई लेकिन अखिलेश सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी और अपराधियों के हौंसले और बुलंद हो गए जिसके चलते बुलंदशहर के हाईवे पर करीब एक दर्जन लोगों ने एक बेहद खौफनाक और घिनौना कांड किया जिसमें इन वहशी दरिंदों ने मानवता के सभी मानक चूर-चूर करते हुए माँ-बेटी की इज्जत को तार-तार कर दिया.
अखिलेश सरकार के कार्यकाल में ही एक पत्रकार को जिन्दा जला दिया गया जिसमें समाजवादी के एक मंत्री का नाम सामने आया. बताया जाता है कि मृतक पत्रकार जोगेंद्र सिंह ने अपने मृत्युपूर्व बयान में सपा एक नेता का नाम लिया था जो उस समय सपा सरकार में मंत्री थे. गौरतलब है कि फेसबुक पर मंत्री राम मूर्ति के खिलाफ अवैध खनन को लेकर मुहिम चलाने वाले सोशल मीडिया पत्रकार जोगेंद्र सिंह की अस्पताल में मौत हो गई थी। जोगेंद्र सिंह को कथित रूप से जिंदा जलाया गया था। सोशल मीडिया के परिवार ने इससे पहले मंगलवार को मंत्री राम मूर्ति के खिलाफ कार्रवाई करने और इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी। परिवार ने दावा किया था कि पुलिस ने सोशल मीडिया पत्रकार पर आग लगा दी थी। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मृतक सोशल मीडिया पत्रकार के परिवार ने जोगेंद्र पर जानलेवा हमले और उसके बाद मौत मामले में कथित मंत्री की भूमिका पर कार्रवाई की मांग की थी । परिवार ने पूरे मामले की स्वतंत्र जांच की भी मांग की थी। पत्रकार के परिवार ने दावा किया था कि कि उनके घर पर एक जून को हुई पुलिस रेड में मंत्री राममूर्ति वर्मा का सहायक गुफरान भी मौजूद था। इसी दौरान जोगेंद्र पर पेट्रोल डालकर आग लगाई गई थी। परिवार का कहना था कि यह हादसा उस वक्त हुआ जब सदर बाजार स्थिति आवास विकास कॉलोनी के उनके घर में पुलिस इंस्पेक्टर श्रीप्रकाश राय ने छापेमारी की थी।लेकिन इस पूरे प्रकरण में समाजवादी सरकार कानों में तेल डालकर बैठी रही. अपराधियों को पकड़ने में नाकाम पुलिस भैंसों को ढूँढने में कामयाब रही.
दूसरों को नसीहत और खुद की फजीहत करने वाले अखिलेश यादव की सरकार में भ्रष्टाचार, अराजकता, जातिवाद और तुष्टिकरण इस हद तक बढ़ गया था कि अखिलेश यादव के पिता एवं समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी समय-समय पर अखिलेश सरकार की कार्यप्रणाली पर गहरा असंतोष व्यक्त किया था.
लोकतंत्र का जितना चीरहरण अखिलेश सरकार के कार्यकाल में हुआ, शायद उससे पहले कभी नहीं हुआ. गुंडागर्दी, जातिवाद, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, तुष्टिकरण और अराजकता का बोलबाला जितना अखिलेश सरकार में हुआ है उसपर पूरी एक किताब लिखी जा सकती है.