उत्तरप्रदेश के ब्राह्मण समाज का हाल ठीक वैसा ही है जैसा कि सब्जियों में आलू का होता है। आलू हर सब्जी में पड़ता है लेकिन उसका ख़ुद का कोई नाम नहीं होता। उदाहरण के तौर पर सेम के साथ आलू पड़ता है लेकिन सब्जी सेम की होती है, ऐसे ही गोभी में आलू भी पड़ता है लेकिन सब्जी गोभी की ही कहलाती है।
ठीक ऐसे ही सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस और आप लगभग सभी पार्टियों में ब्राह्मण है, लेकिन उसके बावजूद इनमें से कोई भी पार्टी ब्राह्मणों की नहीं कहलाती है। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ब्राह्मण समाज कभी किसी के पीछे चलना पसंद नहीं करता, खुद ब्राह्मण ही ब्राह्मण के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करता। और जो लोग ब्राह्मणों के नेता बने घूमते हैं, वह भी अपने को ब्राह्मणों का नेता नहीं बताते।
बड़े भैया श्री सतीश चंद्र मिश्रा आजकल ब्राह्मणों के एक बड़े हितैषी के रूप में प्रदेश भर में भ्रमण कर रहे हैं लेकिन बड़े भैया श्री सतीश चंद्र मिश्रा में जरा भी हिम्मत है तो वह “बसपा” का नाम “बहुजन समाज पार्टी” से बदलकर “ब्राह्मण समाज पार्टी” रख दें। ऐसे ही समाजवादी पार्टी में जो लोग ब्राह्मणों के नेता बने घूम रहे हैं वह श्रीमान अखिलेश जी से कहें कि वह MY (मुस्लिम-यादव) को छोड़कर BY यानी (ब्राह्मण-यादव) की बात करें। लेकिन अखिलेश जी से ऐसा कहने की हिम्मत कोई नहीं करेगा। क्योंकि सबको मालूम है कि जन्नत की हक़ीक़त क्या है, लेकिन दिल को बहलाने के लिए यह ख़्याल अच्छा है।
आम आदमी पार्टी तो सही मायने में जनाब अमानुतल्ला खान साहब की पार्टी है, उसमें भला ब्राह्मणों का क्या काम? ब्राह्मण तो बस “आप” की पूंछ पकड़े घूम रहे हैं।
अब अगर भाजपा की बात करें तो भाजपा में डिप्टी सीएम बने श्री दिनेश चंद्र शर्मा बताएं कि उन्होंने ब्राह्मणों को कौन सा वरदान दिया है? ब्राह्मण समाज के लिए श्रीमान दिनेश चंद्र शर्मा का कोई विशेष योगदान हमें तो नहीं दिखाई दिया। अलबत्ता यह जरूर है कि ब्राह्मण समाज को यह भ्रम जरूर है कि उनका एक नेता उत्तरप्रदेश का उपमुख्यमंत्री बना बैठा है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों को कोई लाभ पहुंचा हो तो बताइए। भाजपा को ब्राह्मणों की पार्टी कभी माना ही नहीं गया, अलबत्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज भी ब्राह्मणों का संगठन माना जाता है।
जहां तक प्रश्न कांग्रेस का है तो उसे तो तथाकथित जनेऊधारी दत्तात्रेय गोत्र के पोंगा पंडित श्री राहुल गांधी ने पूरी तरह से नेस्तानाबूत कर दिया है, यह कहकर कि कांग्रेस “मुस्लिम पार्टी” है। ऐसे में कांग्रेस को तो ब्राह्मण पार्टी माना ही नहीं जा सकता है।
कुल मिलाकर ब्राह्मण रहे आलू ही, जो हर सब्जी में पड़कर उसका स्वाद तो बढ़ा देता है लेकिन उसकी ख़ुद की कोई पहचान नहीं होती।
वैसे ब्राह्मणों को आलू ही बने रहने में फायदा है, वरना इनकी कोई भी पहचान नहीं रहेगी। क्योंकि ब्राह्मण को श्राप है कि वह कभी एकजुट और एक नेतृत्व को स्वीकार करके नहीं रह सकता है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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