मुहम्मद इकबाल का जन्म सन १८७३ ईसवी में और मृत्यु सन १९३८ ईसवी में हुई थी. वे सियालकोट पंजाब के रहने वाले थे. लाहौर से उन्होंने एम् ए किया. कैम्ब्रिज से उन्होंने दर्शन का अध्ययन किया एवं म्यूनिख से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. उनके डाक्टरेट का विषय “ईरानी रहस्यवाद” था. १९०८ ईसवी में वे भारत लौटे और लाहौर में उन्होंने अपनी बैरिस्टरी आरंभ की. सन १९२२ में उन्हें सरकार की ओर से “सर” का ख़िताब मिला. सन १९३० ईसवी में वे मुस्लिम लीग के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए. सन १९२८-२९ ईसवी में मद्रास में उन्होंने इस्लाम पर छह बयान दिए. उन व्याख्यानों से प्रभावित होकर लार्ड इरविन ने उन्हें धर्म और दर्शन पर व्याख्यान देने को ऑक्सफोर्ड भिजवाया. ये व्याख्यान ही उनके गद लेख हैं बाकि जो कुछ उन्होंने कहा वो केवल कविताओं में ही कहा. जवाहर लाल नेहरु ने अपने ग्रन्थ “हिदुस्तान की कहानी” में लिखा है कि “इकबाल पाकिस्तान की सबसे पहले सलाह देने वालों में से थे. फिर भी ऐसा मालूम होता था कि उन्होंने उसके जन्मजात खतरे और उसके निकम्मेपन को पहले ही भांप लिया था.” एडवर्ड टामसन ने लिखा है कि बातचीत के सिलसिले में इकबाल ने उन्हें बतलाया था कि उन्होंने मुस्लिम लीग के अधिवेशन के सभापति होने के नाते पाकिस्तान की सलाह दी थी. लेकिन उन्हें इस बात का यकीन था कि पाकिस्तान कुल मिलाकर सारे हिंदुस्तान के ही लिए, खासतौर पर मुसलमानों के लिए घातक होगी.
१९३० ईसवी में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में कहा था-“ मैं ये देखना पसंद करूंगा कि पंजाब, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बना दिया जाये. पश्चिमोत्तर मुसलमान राज्य ही मुझे मुसलमानों की अंतिम मंजिल लगती है”. मुहम्मद इकबाल ने हिंदुस्तान के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को एक अलग राज्य का दर्जा देने के सलाह दी.
सुहैल जहीर लारी की “ए इस्लास्तरेट हिस्ट्री ऑफ़ सिंध” के नए संस्करण में ई.जे थामस नामक व्यक्ति को लिखे इकबाल के पत्र को प्रकाशित किया गया है. जिसमें इकबाल ने लिखा है- “मैंने एक गलती की है, जिसे मैं तुरंत बता दूं, क्योंकि मुझे लगता है कि यह काफी गम्भीर है. मुझे पाकिस्तान नाम की योजना का कर्णधार बताया जा रहा है. पाकिस्तान मेरी योजना नहीं है. मैंने अपने सम्बोधन में ये सुझाव रखा था, वह एक मुस्लिम प्रान्त यानि प्रस्तावित भारतीय संघ के पश्चिमोत्तर हिस्से में, जहाँ मुस्लिमों की अधिक आबादी है, को देश का एक प्रान्त बनाने सम्बन्धी था.”
–आधुनिक भारत में साम्प्रदायिकता का जन्म (भाग-३)
विशेष – यह लेख “भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन” (ज्ञान सदन प्रकाशन) जिसके (लेखक मुकेश बरनवाल) की पुस्तक में से सम्पादित किये गए कुछ अंश पर आधारित है