मुसलमानों का बुद्धिजीवी वर्ग जिन्ना के द्विराष्ट्र के सिद्धांत (टू नेशन थ्योरी) को स्वीकार करता था. अलीगढ़ के कतिपय मुस्लिम प्रोफेसरों ने इसलिए यहाँ तक कह दिया था कि “चेकस्लोवाकिया के सूडेटन जर्मनों और चेक निवासियों में जितनी भिन्नता है, उससे कहीं अधिक भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों में है. १९४० में कुछ मुसलमान ये कहने लग गए थे कि भारत न एक देश है और न एक राज्य. यह एक महाद्वीप है, जिसमें अनेक राष्ट्रीयता का निवास है. इन राष्ट्रियताओं के अपने पृथक राज्य होने चाहिए”.
२३ मार्च १९४० ईसवी को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में “द्विराष्ट्र के सिद्धांत” का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे कि अगले दिन के समाचार-पत्रों ने “पाकिस्तान प्रस्ताव” कहकर प्रकाशित किया. इस प्रस्ताव का प्रारूप सिकन्दर हयात खान ने तैयार किया था, जबकि फज्लुहक ने इसे प्रस्तुत किया और ख्लिकुज्ज्मा ने इसका समर्थन किया. “पाकिस्तान” शब्द का निर्माण, “पाकिस्तान” का पहला प्रस्तावित नक्शा व “पाकिस्तान” के लिए “पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट” नाम से पहला सन्गठन बनाने वाला व्यक्ति कैम्ब्रिज का एक अंडर ग्रेजुएट पंजाबी मुसलमान रहमत अली था. इकबाल ने अपने भाषण में एक सुझाव दिया था, रहमत अली ने उसी विचार को अधिक विस्तार व् तर्क देकर १९३३ ईसवी में अपने चार पन्ने का वह मशहूर पर्चा जारी किया, जिसमें पाकिस्तान की पूरी रूपरेखा थी. उसने स्पष्ट रूप से कहा कि पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त (अफगान प्रान्त), कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान राज्य बने, जिसका नाम “पाकिस्तान” हो. संक्षेप में, पाकिस्तान शब्द की रचना इस प्रकार की गई-
P- पंजाब, A-अफगानिस्तान, K-कश्मीर, S- सिंध और Tan-बलूचिस्तान
इस पर्चे में चार लोगों के दस्तखत थे- मुहम्मद असलम खान, शेख मुहम्मद सादिक, चौधरी रहमत अली और इनायत उल्ला खान और इसका शीर्षक था- अभी नहीं तो कभी नहीं.
लेकिन उल्लेखनीय है कि 1940 ईसवी के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन तक पाकिस्तान की योजना के रूप में रहमत अली का कहीं कोई प्रभाव नहीं था और न ही इस प्रस्ताव में कहीं भी “पाकिस्तान” शब्द का प्रयोग किया गया था. इसी अधिवेशन में जिन्ना ने कहा था कि “भारत के राष्ट्र नहीं है, बल्कि कई राष्ट्रों का देश है और हर राष्ट्र को स्वतंत्र राज्य मिलना चाहिए.”
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