बीते सोमवार को नगर क्षेत्र के दशहरा बाग मैदान से कलेक्ट्रेट तक आयोजित ‘बीजेपी गद्दी छोड़ो मार्च’ कार्यक्रम में बाराबंकी पहुंचे अजय कुमार लल्लू ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के पिता को “अब्बा” कहे जाने वाले बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि “मठ और मंदिर में उन्होंने इसी तरह की भाषा को सीखा होगा।”
अजय कुमार लल्लू साहब की इसमें कोई गलती नहीं है, उनके आका श्रीमान “पप्पू साहब” भी कहा करते हैं कि लोग मंदिरों में लड़कियां छेड़ने जाते हैं। मज़े की बात यह है कि इस बयान के बाद से ही “पप्पू साहब” देश के मंदिरों में माथा टेकते हुए घूमते रहे हैं। अब “लल्लू साहब” के बयान से यह ज़ाहिर है कि उनका यह कहना है कि श्री योगी आदित्यनाथ ने मंदिरों और मठों से “ऐसी भाषा” सीखी है। अर्थात दूसरे शब्दों में मंदिरों और मठों में “अभद्र भाषा” सिखाई जाती है।
मंदिरों और मठों पर अनर्गल और बेहूदे आरोप लगाना गांधीवादियों, वामपंथियों और सेक्युलर गैंग की तुष्टिकरण की राजनीति और हिन्दू विरोधी मानसिकता का सदा से परिचायक रहा है। ख़ुद “तुष्टिकरण की राजनीति के गॉड फादर” परम पूजनीय स्व. मोहनदास करमचंद गांधी ने मंदिरों में पवित्र कुरान का पाठ कराया था। किंतु क्या गांधी ने कभी किसी मस्जिद अथवा मदरसे में श्रीमद गीता का पाठ करने या कराने का साहस किया था? शायद कभी नहीं।
हिन्दू समाज की सहिष्णुता और उदारवादी विचारधारा का सबसे दुःखद पहलू यह है कि कोई भी “पप्पू” या “लल्लू” हिन्दू संस्कृति और आस्थाओं पर आसानी से कुठाराघात कर देता है।
क्या अजय कुमार लल्लू जैसे हिन्दू विरोधी मानसिकता के नेता कभी इस प्रकार के अनर्गल और बेहूदे आरोप मस्जिद/दरगाह/मदरसे/चर्च/मिशनरी आदि पर लगा पाए हैं या लगा पाएंगे। शायद कभी नहीं। क्योंकि वह जानते हैं कि यदि उन्होंने ऐसी गुस्ताख़ी करने की कभी कोई कोशिश की तो उनके ख़िलाफ़ धड़ और सर जुदा कर दिए जाने के फ़तवे जारी कर दिए जाएंगे और उनके सर की खासी कीमत भी लगा दी जाएगी।
लेकिन हिन्दू समाज गांधी के तीन बंदरों की तरह न कुछ बोलता है, न सुनता है और न देख पाता है। क्योंकि गांधी ने उसे सिखाया था कि एक गाल पर थप्पड़ ख़ाकर दूसरा गाल आगे कर दो। और आज तक हिन्दू उसी सिद्धान्त को अपनाए हुए है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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