एक कहावत है कि “आप कौन? जी, मैं खामख्वाह”. इस कहावत को अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने अक्षरशः चरितार्थ किया है।
हुआ यूं कि उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति संबंधी याचिका सोमवार को खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अखिल भारत हिन्दू महासभा की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि मुस्लिम महिलाओं को इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाने दीजिए। न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘मुस्लिम महिलाओं को इस बारे में चुनौती देने दीजिए।’
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा था कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में असफल रहे हैं कि केरल के मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता है। महासभा की केरल इकाई के अध्यक्ष स्वामी दत्तात्रेय साई स्वरूप नाथ ने सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले के आलोक में याचिका दायर की थी और कहा था कि अब समय आ गया है कि मुस्लिम महिलाओं का भी मस्जिदों में प्रवेश सुनिश्चित किया जाए। याचिकाकर्ता का कहना था कि महिलाओं को मस्जिद के इबादतखाने में प्रवेश की मनाही है।
यहाँ प्रश्न यह है कि मस्जिद में नमाज कौन पढ़ेगा और कौन नहीं इसका फैसला केवल इस्लामिक विद्वान या मुस्लिम समुदाय को ही करना होगा।
अगर मुस्लिम महिलाओं को इस बात को लेकर कोई एतराज है कि उन्हें मस्जिद में प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता तब निश्चित रूप से माननीय सुप्रीम कोर्ट या कोई भी संवैधानिक संगठन इस पर कोई कार्यवाही कर सकता है।
लेकिन हिन्दू महासभा का इस पर याचिका दायर करना हमारी समझ से परे है।
इस देश में सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या की है, जिसपर अभी तक किसी हिन्दू संगठन ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की है, इस देश में हिन्दू समाज को लगातार दलित, पिछड़ा, सवर्ण के रूप में तोड़ने का षडयंत्र रचा जा रहा है लेकिन दुर्भाग्यवश कोई भी स्वघोषित हिन्दू संगठन इसके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा रहा है।
पाकिस्तान में लाखों मजबूर, ग़रीब और बेबस हिन्दू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है लेकिन एक शब्द किसी हिन्दू नेता का नहीं निकला।
दिल्ली में पवित्र मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट किया गया, कोई संगठन आवाज़ उठाने को तैयार नहीं है।
लाखों कश्मीरी पंडित घर से बेघर हो गए, तंबुओं में दिन-रात गुजार रहे हैं, उनकी बहु-बेटियां किसी प्रकार अपनी इज़्ज़त-आबरू को ढके हुए हैं, लेकिन किसी भी तथाकथित हिन्दू संगठन ने कोई आवाज़ नहीं उठाई।
ईसाई मिशनरियां अनपढ़, गरीब, मजबूर और बेबस आदिवासियों का लगातार धर्म परिवर्तन करा रही हैं लेकिन कोई भी हिन्दू संगठन उनके विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं है।
फिल्मों में और तमाम मनोरंजक कार्यक्रमों में हिन्दू देवी-देवताओं का मज़ाक बनाया जाता है, लेकिन कोई भी हिन्दू समाज का ठेकेदार एक शब्द मुहं से नहीं निकालता है।
लव जिहाद के चलते हजारों मजलूम हिन्दू बेटियों का धर्म भ्रष्ट कर दिया गया, कइयों का क़त्ल कर दिया गया, कई को कोठों पर बेच दिया गया, कईयों को आतंकवादी संगठनों के हवाले कर दिया गया ताकि वहां पर वहशी दरिंदो की जिस्मानी भूख मिटाई जा सके, क्या कोई हिन्दू धर्मधिकारी एक शब्द भी बोलता है?
मस्जिद में कौन नमाज पढ़ेगा यह हमारा विषय नहीं, मुस्लिम औरतों को तीन तलाक़ क्यों नहीं देना चाहिए इस पर हम चर्चा क्यों करें। हमें क्या जरूरत है कि हम दूसरों के फटे में टांग अड़ाते घूमें।
हम अपने ही घर को सम्हालने का काम क्यों नहीं करते, क्यों हम दूसरों के घरों में झाँकते घूम रहे हैं। पहले अपने घर को साफ करिए उसके बाद आप पड़ोसी पर उंगली उठाएं तो बेहतर होगा।
खामख्वाह, दसरों के फटे में टांग अड़ाना कोई अच्छी बात नहीं है।
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*