लाहौर अधिवेशन में, अपने अध्यक्षीय भाषण में जिन्ना ने द्विराष्ट्र के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा कि “हिन्दू और मुसलमान शब्द दो धर्मो को सूचित नहीं करते, अपितु दो पृथक राष्ट्रों के सूचक हैं. मुसलमानों और हिन्दुओं के धार्मिक मन्तव्य, सामाजिक सन्गठन, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, साहितिय्क व सांस्कृतिक परम्पराएँ सब एक-दुसरे से भिन्न है. न उनमें परस्पर विवाह होता है, न खाना-पीना. वस्तुतः हिन्दू और मुस्लिम सभ्यताएं आधारभूत रूप से एक-दुसरे से भिन्न हैं. दोनों सभ्यताओं का आधार परस्पर विरोधी विचारों और मान्यताओं पर है. हिन्दू और मुसलमान इतिहास की भिन्न-भिन्न धाराओं से प्रेरणा लेते हैं. उनकी कथाएं अलग हैं, महापुरुष अलग हैं और साहित्य अलग है. एक के लिए जो वीर व् शहीद है, दुसरे के लिए वह शत्रु है. एक की विजय दुसरे की पराजय है. ऐसी दो मूलतः विभिन्न राष्ट्रीयताओं को, जिनमें से एक बहुसंख्यक में है और दूसरी अल्पसंख्यक में, एक राज्य में रखने का परिणाम यही होगा की उससे असंतोष उत्पन्न हो और अंत में उस राज्य व शासन का विनाश हो जाये”.
दूसरी ओर मौलाना आजाद ने कहा था कि “मैं मुसलमान हूँ, और गर्व के साथ अनुभव करता हूँ कि मुस्लमान हूँ. किन्तु इन तमाम भावनाओं के अलावा में अंदर एक और भावना है, जिसे मेरी जिन्दगी की वास्तविकताओं ने पैदा किया है. इस्लाम की आत्मा मुझे उससे नहीं रोकती, बल्कि मेरा मार्ग-प्रशस्त करती है. मैं अभिमान के साथ अनुभव करता हूँ कि “मैं हिन्दुस्तानी हूँ” और इसलिए मैं इसके विभाजन की बात को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकता हूँ”.
यह एक निर्विवाद सत्य है कि अल्पसंख्यक समुदाय के मनोविज्ञान में यह बात स्वभाविक रूप से गहरी बैठ जाती है कि बहुसंख्यक समुदाय उनके हितों को मौका मिलते ही कुचल देंगे. खासतौर से मुस्लिम अल्पसंख्यकों में यह भाव अन्य अल्पसंख्यकों की तुलना में ज्यादा रहती है. भारत में वैसे अल्पसंख्यक जो बाहर से अंदर आये, उसमें से मुस्लिमों के भारत में प्रवेश का स्वरूप अन्य अल्पसंख्यकों से भिन्न था. मुस्लिमों का भारत में प्रवेश और सत्ता अधिग्रहण ताकत के बल पर हुई थी. इसने भारत में मंदिरों को लूटा, मूर्तियों को तोड़ा, मंदिरों को मस्जिदों में तब्दील किया, हिन्दुओं को बलात या तो अपने धर्म में शामिल किया या फिर उसपर जजिया कर लगाया. मुस्लिमों के भारत आगमन के स्वरूप में मौजूद यही भिन्नता हिन्दू व् मुस्लिम के बीच के सम्बन्धों में खटास उत्पन्न करता रहा.
पी.सी जोशी के अनुसार, “हिन्दू-मुसलमानों के बीच तीव्र मतभेद का कारण मुसलमानों का सामाजिक-आर्थिक विकास में पिछड़ जाना ही नहीं है, वरन इसमें यह सत्य भी निहित है कि ब्रिटिश शासनकाल के महत्वपूर्ण भागों तथा भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख क्षेत्रों में मुस्लिम उच्च वर्ग, जो पहले शासक वर्ग था, वह अब हिन्दुओं के मुकाबले में अपनी परम्परागत उत्कृष्टता और अग्रणीयता खोता चला गया”. भारत में साम्प्रदायिकता के उद्भव का सर्वप्रथम व् सर्वप्रमुख कारण मुस्लिमों का हिन्दुओं की तुलना में सामाजिक-आर्थिक मामलों में पिछड़ा होना था.