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ऋषि भारद्वाज के प्रमुख पुत्रों के नाम हैं- ऋजिषवा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बीठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र. उनकी २ पुत्रियां थीं रात्रि और कशिपा. इस प्रकार ऋषि भारद्वाज की १२ संतानें थीं. बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं दलित समाज के लोग भारद्वाज गोत्र लगाते हैं.
आंगिरस नाम के एक ऋषि और भी थे जिन्हें घोर आंगिरस कहा जाता है और जो कृष्ण के गुरु ही कहे जाते हैं. कहते हैं कि भृगु वंश की एक शाखा ने आंगिरस नाम से के स्वतंत्र वंश का रूप धारण कर लिया अतः शेष भार्गवों ने अपने को आंगिरस कहना बंद कर दिया.
आन्गिरसों के कुल में अनेक ऐसे ऋषि और राजा हुए हैं जिन्होंने अपने नाम से या जिनके नाम से कुलवंश परम्परा चली, जैसे देवगुरु बृहस्पति, अथर्ववेदकर्ता अथार्वागिरस, महामान्यकुत्स, श्रीकृष्ण के ब्रह्मविद्या गुरु घोर आंगिरस मुनि. भर्ताग्नी नाम का अग्निदेव, पितीश्वरगण, गौतम, वामदेव, गाविष्ठर, कौशलपति कौशल्य(श्रीराम के नाना), पर्शियाका आदि पार्थिव राज, वैशाली का राजा विशाल, आश्वलायन (शाखा प्रवर्तक), अग्निवेश(वैद्य), पेलमुनि पिल्हारे माथुर(इन्हें वेदव्यास ने ऋग्वेद प्रदान किया), गाधिराज गग्र्या मुनि, मधुरावह(मथुरावासी मुनि), श्यामयानी राधाजी के संगीत गुरु, कारीरथ (विमान शिल्पी), कुसीद्की (ब्याज खाने वाले), दाक्षी पाणिनि (व्याकरणकर्ता के पिता), पतंजलि (पाणिनि अष्टाध्यायी के भाष्कर), बिंदु (स्वयंभू मनु के बिंदु सरोवर के निर्माता), भूयसी (ब्राह्मणों को भूयसी दक्षिणा बांटने की परम्परा के प्रवर्तक), महर्षि गालव (जेपुर गलता तीर्थ के संस्थापक), गौरविती (गौरह ठाकुरों के आदिपुरुष), तनडी (शिव के सामने तांडव नृत्यकर्ता रूद्रगण), तैलक (तैलंग देश तथा तैलंग ब्राह्मणों के आदिपुरुष), नारायणी (नारनौल खंड बसाने वाले), स्वयंभुव मनु (ब्रह्मऋषि देश ब्रह्मावर्त के सम्राट मनुस्मृति के आदिमानव धर्म के समाज रचना नियमों के प्रवर्तक), पिंगलनाग (वैदिक छंदशास्त्र प्रवर्तक), माद्री( मद्रदेश मदनिवाणा के सावित्री के तथा पांडू पाली माद्री के पिता, अश्वघोषरामा वात्सायन(स्याजानी औराद दक्षिण देश के कामसूत्रकर्ता), हंडीदास (कुबेर के अनुचर ऋण वसूल करने वाले हूंडीय यक्ष हूणों के पूर्वज), बृहदुक्थ (वेदों की उक्थ भाषा के विस्तारक भाषा के विज्ञानी), वादेव(जनक के राजपुरोहित), कर्तण(सूत कातने वाले), जत्तण(बुनने वाले जुलाहे), विष्णु सिद्ध खाद्यात्र( काटी कोठारों के सुरक्षाधिकारी), मुद्गल (मुद्गर बड़ी गदाधारी), अग्नि जिव्ह( अग्नि मन्त्रों को जिव्हाग्र धार), हंस जिव्ह (प्रजापिता ब्रह्मा के मन्त्रों के जिवाह्ग्र धारक), मत्स्य दग्ध (मछली भूनने वाले), मृकुंड मार्कण्डेय, तित्तिरी (तीतर धर्म से याग्वाल्क्य मुनि के वमन किये कृष्णयजु मन्त्रों को ग्रहण करने वाले तैतरेय शाखा के ब्राह्मण), ऋक्ष जामवंत, शौंग (शुंगव्न्शितथा माथुर सैंगवार ब्राह्मण), दीर्घतमा ऋषि (दीर्घपुर डीगपुर ब्रज के बदरी वन में तप करने वाले), हविष्णु (हवसान अफ्रीका देश की हवशी प्रजाओं के आदिपुरुष), अयास्य मुनि (अयस्क लौह धातु के आविष्कर्ता), कितव ( सन्देशवाहक पत्र लेखक किताब पुस्तकें तैयार करने वाले), कणव् ऋषि (ब्रज कनवारी क्षेत्र के तथा सौराष्ट्र के कन्वी जाति के पुरुष) आदि हजारों का आंगिरस कुल में जन्म हुआ.
उपरोक्त लेख “वेबदुनिया” में प्रकाशित मूल लेख “हिन्दुओं के प्रमुख वंश….” के सम्पादित अंश हैं. मूल लेखक- अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु”
सम्पादन – मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”