मीडिया के हवाले से खबर है कि हमारे युवराज कर्नाटक में चुनावी रैली कर रहे थे कि इसी दौरान किसी सिरफिरे राष्ट्रभक्त ने वन्देमातरम की तान छेड़ दी. बस युवराज को ये बात नागवार गुजर गई. उन्होंने अपने वफादार को घड़ी दिखाकर तुरंत आदेश दिया कि हमारे पास समय नहीं है. इसे जल्दी खत्म कराओ, इसे एक ही लाइन में खत्म करा दो.
बात थी भी नारजगी की. आखिर जिस परिवार ने हमेशा से “कुर्सी वन्दना” की हो उसके पास राष्ट्र्वन्दना जैसे फालतू�(उनके लिए तो फालतू ही है) कामों के लिए वक्त है ही कहाँ. ७० सालों से एक ही ऐसा परिवार है जो इस देश में बिना रोक-टोक राज करता आया है और शायद इसीलिए उसे राजपरिवार कहा जाता है. सत्ता की बू इस परिवार के दिमाग में इस कदर गहराई से समा चुकी है कि उन्हें बिना राजगद्दी के एक-एक पल गुजारना ऐसा महसूस होता है कि मानों कोई जन्मों का प्यासा पानी के लिए तड़प रहा हो. और आजकल तो युवराज राजगद्दी के लिए ऐसे मचल रहे हैं जैसे कोई बच्चा चौदहवीं का चाँद पाने के लिए मचल रहा हो. इस परिवार ने राष्ट्रवन्दना कभी की ही नहीं, क्योंकि यह राष्ट्र उनके लिए मात्र सत्ता सुख का साधन है. सत्ता का भोग करते-करते यह परिवार केवल भोगी बन गया है. राष्ट्र्वन्दना तो कोई योगी ही कर सकता है, भोगी नहीं. इस परिवार के लिए सत्ता ही एकमात्र लक्ष्य है, सत्ता की भूख इन्हें ऐसे तडपाती है मानो कोई मछली जल से बाहर आ गई हो. इस परिवार ने हमेशा ही सत्ता के लिए राष्ट्र और राष्ट्रीय संविधान को अपनी उँगलियों पर नचाया है. सत्ता इस परिवार का जन्मसिद्ध अधिकार है और उसके लिए ये किसी को भी नजरअंदाज कर सकते हैं. चाहे वह राष्ट्रगीत हो, राष्ट्र हो, राष्ट्र का सम्मान हो या फिर राष्ट्र का संविधान.
१२ जून १९७५ को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने भ्रष्ट आचरण के मामले में जब इंदिरा गाँधी की लोकसभा सदस्यता को रद्द कर दिया तब इंदिरा गाँधी ने इस फैसले के केवल १३ दिन पश्चात् यानि २५ जून १९७५ को आपातकाल घोषित कर संविधान को ही स्थगित कर दिया था. जवाहर लाल नेहरु ने १९५९ में कांग्रेस के कई वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की अनदेखी करते हुए अपनी प्यारी सी पुत्री और इस राजपरिवार की इकलौती वारिस इंदिरा गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था. २००४ में राजपरिवार की बहु और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सत्ता पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हुए “राष्ट्रीय सलाहकार परिषद” के रूप में समांतर संविधानेत्तर केंद्र की स्थापना कर दी जबकि संविधान में इस प्रकार का कोई उल्लेख तक नहीं था.
युवराज तो सत्ता की भूख में इतना तड़प रहे हैं कि उन्होंने अपने ही सिद्धांतों को ताक पर रख दिया. २०१३ में यूपीए सरकार के शासनकाल में कांग्रेस के गठबंधन के सहयोगी लालू प्रसाद यादव को बचाने वाले अपनी ही सरकार के एक अध्यादेश को जिस युवराज ने फाड़कर फेंक दिया था और अपने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के संकल्प को मजबूत बनाया था, आज वही युवराज अपने संकल्प और जनता के सपनों को चूर-चूर करके खुद लालू प्रसाद यादव से मिलने पहुँच गए. उस लालू प्रसाद यादव से जो भ्रष्टाचार के आरोप में अपनी सजा भुगत रहा है. और इससे भी ज्यादा अफसोसजनक बात ये है कि ये मुलाकात जिस दिन हुई उससे ठीक एक दिन पहले युवराज भ्रष्टाचार के खिलाफ चीख-चीख कर नारे बुलंद कर रहे थे. यानि गुड़ खाओ और गुलगुलों से परहेज करो.
लेकिन साहब युवराज तो युवराज ही हैं. कहावत है कि “बॉस इज आलवेज राइट, इफ रौंग दैट इज राइट.”
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
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