विश्वकर्मा वंश कहीं-कहीं भृगु कुल से और कहीं अंगिरा कुल से सम्बन्ध रखते हैं. इसका कारण है कि हर कुल में अलग-अलग विश्वकर्मा हुए हैं. हमारे देश में विश्वकर्मा नाम से एक ब्राह्मण समाज भी है, जो विश्वकर्मा समाज के नाम से मौजूद है. जांगीड ब्राह्मण, सुतार, सुथार और अन्य सभी शिल्पी निर्माण कला एवं शास्त्र ज्ञान में पारंगत होते हैं. यह ब्राह्मणों में सबसे श्रेष्ठ समाज है क्योंकि ये निर्माता हैं. शिल्पज्ञ, विश्वकर्मा ब्राह्मणों को प्राचीनकाल में रथकार वर्धकी, एतब कवि, मोयावी, पांचाल, रथपति, सुहस्त सौर और परासर आदि शब्दों से सम्बोधित किया जाता था. उस समय आजकल के सामान लोहकार, काष्ठकार, सुतार और स्वर्णकारों जैसे जातिभेद नहीं थे. प्राचीन समय में शिल्प कर्म बहुत ऊंचा समझा जाता था और सभी जाति, वर्ण समाज के लोग ये कार्य करते थे.
विश्वकर्मा अभूतपूर्व ब्राह्मण स्तवपराअतानु. त्वष्ट्र प्रजापते पुत्रो निपुण सर्व कर्मस..
अर्थ- प्रत्यक्ष आदि ब्रह्म विश्वकर्मा त्वष्टा प्रजापति का पुत्र पहले उत्पन्न हुआ और वह सब कामों में निपुण था.
प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्टा पुत्र विश्वकर्मा आदि अनेक विश्वकर्मा हुए हैं. प्रथम विश्वकर्मा के पिता का नाम वास्तुदेव और माता का नाम अंगीरसी था. प्रथम विश्वकर्मा के ५ पुत्र थे- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ.
जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलित समाज के लोग वशिष्ठ गोत्र लगाते हैं वे सभी लोग वशिष्ठ कुल के हैं. वशिष्ठ नाम से कालान्तर में कई ऋषि हो गये हैं. एक वशिष्ठ ब्राह्मण के पुत्र हैं, दुसरे इक्ष्वाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिश्चन्द्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में और पांचवे राजा दशरथ के काल में हुए. अयोध्या के राजपुरोहित के पद पर कार्यरत ऋषि वशिष्ठ की सम्पूर्ण जानकारी वायु, ब्रह्माण्ड एवं लिंग पुराण में मिलती है. इन ऋषियों एवं लिंग पुराण में मिलती है. इस ऋषियों एवं गोत्रकारों की नामावली मत्स्य पुराण में दर्ज है. इस वंश में क्रमशः प्रमुख लोग हुए हैं- देवराज, आपव, अथर्वनिधि, वारुनि, श्रेष्ठभाज, सुवर्चस, शक्ति और मैत्रावरुनी. एक अल्प शाखा भी है, जो जातुकर्ण नाम से है.
उपरोक्त लेख “वेबदुनिया” में प्रकाशित मूल लेख “हिन्दुओं के प्रमुख वंश….” के सम्पादित अंश हैं. मूल लेखक- अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु”
सम्पादन – मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”