कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल बिल का विरोध कर रहे हैं, उनका मानना है कि यह बिल धर्म के आधार पर देश को बांटने की कोशिश है। ठीक यही बात हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान के भड़वे प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कही है। गौरतलब बात यह है कि आखिर हमारे देशभक्त विपक्षी नेतागण ज़लील पाकिस्तानी भाषा क्यों बोल रहे हैं।
इन विपक्षी दलों में कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, आरजेडी, आप और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां मुख्यरूप से शामिल हैं।
यहां एक और ग़ौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस जिसने 1947 में धर्म के आधार पर इस देश का बंटवारा किया, जिस कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि “देश के संसाधनों पर केवल मुसलमानों का हक़ है”. यह वही कांग्रेस है जिसके एक नेता ने कहा था कि “मैं शिक्षा से ईसाई, संस्कृति से मुसलमान और दुर्भाग्य से हिन्दू हूँ”.
समाजवादी पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष औऱ उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि “केवल मुस्लिम बेटियां ही हमारी बेटियां हैं”. तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल के तो विषय में कुछ भी कहना कम ही है। सही मायने में तो यह दोनों ही विभीषण हैं, इनका बस चले तो यह तो हिंदुओं को देश निकाला ही दे दें।
शरिया कानून के पैरोकार और बाबर-भक्त असदुद्दीन ओवैसी साहब भी तो इस मुद्दे पर चेमे-गुंइयां कर रहे हैं, यह उसी एआईएमआईएम पार्टी के नेता हैं जिसके एक नेता ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि “15 मिनट में हिंदुओं को खत्म कर दिया जाएगा गर पुलिस हटा ली जाए”.
इसे कहते हैं छाज बोले सो बोले, छलनी बोले जिसमें 72 छेद।
उधर भाजपा सरकार की भी एक बात समझ से बाहर है कि हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी और सिखों के अलावा वह ईसाइयों को भारत में शरण क्यों देना चाहती है।
जबकि इस दुनिया में ईसाई धर्म पहले नम्बर पर आता है और ईसाई बाहुल्य देशों की भी कोई कमी नहीं है। तब हम बाहरी ईसाइयों को अपने देश में शरण क्यों दें।
मुस्लिम बाहुल्य देशों से निकाले गए मुस्लिम या ईसाइयों को बसाने का ठेका भारत क्यों ले।
हमने जब-जब विदेशी धर्म को अपने देश में पनाह दी है, तब-तब हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और हमारी स्वतन्त्रता को खतरा हुआ है। ईसाई मिशनरियों ने भी हमें कोई कम नुकसान नहीं पहुंचाया है।
अगर विदेशी मुसलमानों ने हमपर आक्रमण किया था तो अंग्रेजों ने भी हमें गुलाम बनाये रखा था।
क्या हम एक बार फिर से गुलाम होने की तैयारी कर रहे हैं।
-पंडित मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”