युवा ह्रदय सम्राट स्वामी विवेकानंद कहते हैं- “बालकों तुम दृढ़ बने रहो, मेरी संतानों में से कोई भी कायर न बने. तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है सदा उसी का साथ करो. बिना विघ्न बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है. मैं तो लोहे के सदृश दृढ़ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँ जो कभी कंपित न हो. दृढ़ता के साथ लगे रहो, ईश्वर तुम्हें आशीर्वाद दे. हे युवाओं! तुम उस सर्वशक्तिमान की संतानें हो. तुम उस अनंत दिव्य अग्नि की चिंगारियां हो.” वह कहते हैं- “हर आत्मा मूलरूप में देवस्वरूप है और लक्ष्य इस दिव्यता को जगाना है (Each soul is potentially divine and the goal is to manifest this divine)”. स्वामी विवेकानंद के अनुसार “लक्ष्य के अभाव में हमारी ९९ प्रतिशत शक्तियाँ इधर-उधर बिखरकर नष्ट होती रहती हैं. अध्यात्मिक आदर्श के अभाव में हम अपनी अंतर्निहित दिव्यता एवं पूर्णता को भुलाकर देह-मन तक ही अपना परिचय मान बैठते हैं. हमारे समस्त दु:खों, कष्टों और विषादों का मूल कारण यह आत्मविस्मृति ही है. यह अज्ञान ही सब दुःख-बुराइयों की जड़ है. इसी कारण हम स्वयं को पापी, दीन-हीन और दुष्ट-दरिद्र मान बैठे हैं और दूसरों के प्रति भी ऐसी ही धारणा रखते हैं तथा इसका एकमात्र समाधान अपनी दिव्य प्रकृति एवं आत्मशक्ति का जागरण है”. वह जोर देते हुए कहते हैं कि “आध्यात्मिक और मात्र आध्यात्मिक ज्ञान ही हमारे दुःख व मुसीबतों को सदैव के लिए समाप्त कर सकता है.” स्वामी जी कहते हैं कि “जब समस्त शक्ति, समस्त समस्याओं के समाधान का स्रोत तुम्हारे अंदर विद्यमान है, तो फिर सुख-भोगों और उपलब्धियों के पीछे यह अंतहीन भटकाव कैसा? इन्द्रिय सुख एवं भोगों की इस अंधी दौड़ का कोई अंत भी तो नहीं. अस्तित्व की पूर्ण आहुति देने पर भी यह आग शांत होने वाली नहीं.” स्वामी विवेकानंद युवाशक्ति में ऊर्जा का संचार करते हुए कहते हैं- “मैं जानता हूँ, मार्ग बहुत कठिन है, किन्तु यदि तुम्हारे अंदर आदर्श की अग्नि प्रदीप्त है तो चिंता की कोई बात नहीं है. ऐसे में मार्ग की असफलताएं, इनकी परवाह मत करो. वे तो स्वभाविक हैं और वे तो जीवन का सौन्दर्य हैं. जीवन के इस संग्राम में धूल-मिट्टी का उड़ना तो स्वभाविक ही है और जो इस धूल को सहन नहीं कर सकता, वह आगे कैसे बढ़ेगा.
आज के युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद से अच्छा और सच्चा उदाहरण कोई नहीं हो सकता. आज इस देश को पुनः एक स्वामी विवेकानंद की आवश्यकता है.