चंद आपराधिक मानसिकता और कट्टरपंथी विचारधारा के लोगों की गलतियों की सजा पूरी कौम को नहीं दी जा सकती. हम २१ करोड़ मुलसमानों को देश से बाहर नहीं निकाल सकते और न ही उन्हें आतंकी माना जा सकता है. ओवैसी, अबू आजमी, सोज, महबूबा मुफ़्ती, फारूक अब्दुल्ला, आजम खान जैसों को कौन पाल रहा है और क्यों पाल रहा है? इस सवाल का जवाब है राजनीति. दरअसल इस देश में झगड़ा हिन्दू-मुस्लिम के बीच नहीं है बल्कि असल झगड़ा सत्ता का है और कुर्सी का है. आम मुसलमान या हिन्दू तो सिर्फ दो वक्त की रोटी और अपनी और अपने परिवार के जानमाल की सुरक्षा चाहता है. लेकिन जिन्हें सत्ता की भूख है, जिनके आगे-पीछे कमांडों चलते हैं, जिनके घरों पर उनके परिवार की सुरक्षा में सैंकड़ों पुलिसकर्मी हमेशा मुस्तैद रहते हैं, वही लोग गुनहगार हैं, सजा के असल हकदार भी यही लोग हैं. इनका न कोई धर्म है, न ईमान है, न ये हिन्दू हैं और न ही मुसलमान. ये सिर्फ सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जिनके जबड़ों में खून लगा है, आम इंसान का खून. ये आदमखोर बन चुके हैं, इन्सान के गोश्त के अलावा कोई और गोश्त इन्हें अच्छा नहीं लगता.
अभी कुछ दिन पहले अहमदाबाद में NRC और CAA के विरोध करने के नाम पर उपद्रवियों की एक भीड़ ने चार पुलिसवालों को घेर लिया और उनपर लगातार पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी. लेकिन उसी भीड़ में से ७ मुसलमान ऐसे भी निकले जो उपद्रवियों और पुलिसवालों के बीच ढाल बनकर खड़े हो गए और उन्होंने अपनी जान पर खेलकर उन निर्दोष पुलिसवालों की जान बचा ली. यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि ये सातों लोग मुसलमान ही थे, और उनका पुलिसवालों से केवल इंसानियत का रिश्ता था. यह घटना एक कैमरे में कैद हो गई इसलिए पूरे देश ने उसको देखा लेकिन हो सकता है कि ऐसी और घटनाएँ भी घटी हों जिन्हें कैमरों में कैद नहीं किया जा सका हो.
कोई शख्स सिर्फ इसलिए आतंकी, उपद्रवी, पत्थरबाज, कट्टरपंथी या चरमपंथी नहीं माना जा सकता क्योंकि वह मुसलमान है. आज हम जिस परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों की सूची में गिने जाते हैं उसका श्रेय किसी हिन्दू, बौद्ध, पारसी, सिख या ईसाई को नहीं जाता है, इस देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाने वाले पूर्व राष्ट्रपति स्व. ए.पी.जे कलाम साहब भी एक मुसलमान थे, प्रसिद्ध संगीतकार एआर रहमान साहब जिन्होंने अपने संगीत के माध्यम से वंदेमातरम् को एक नई पहचान दी, वह भी एक मुसलमान ही थे. वीर अब्दुल हमीद साहब भी मुसलमान थे.