ॐ सृष्टि की इच्छा करके ब्रह्म ने तप, वाणी, रति, काम और क्रोध को उत्पन्न किया. भले और बुरे कर्मों के विचार के लिए धर्म और अधर्म को बनाया. सुख, दुःख, काम, क्रोध आदि द्वंद्व धर्मों के आधीन संसार के प्राणियों को किया. पंचमहाभूतों की सूक्ष्ममात्रा-पंचतन्मात्राओं के साथ यह सारी सृष्टि क्रम से पैदा हुई है. सृष्टि के आदि में उस प्रभु ने, जिस स्वाभाविक कर्म में, जिसकी योजना की उसका जब-जब जन्म हुआ उसी कर्म को उसने स्वयं किया. हिंस्रकर्म-अहिंस्रकर्म, मृदु-दया, क्रूर कठोरता, धर्म ब्रह्मचर्य, गुरुसेवा, अधर्म-झूठ बोलना आदि जो पूर्वकल्प में जिसका था, वही सृष्टि के समय उसमें प्रविष्ट हो गया. जिस प्रकार बसंत ऋतु अपने स्वाभाविक चिन्हों को जैसे आम की मंजरी(बौर) धारण करते हैं, उसी प्रकार मनुष्य अपने-अपने पूर्व कर्मों को प्राप्त होते हैं. परमात्मा ने लोक की वृद्धि के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों को पैदा किया. इनमें विराटरूप परमात्मा के मुख से ब्राह्मण, भुज से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पैर से शूद्र उत्पन्न हुए. इस संसार के दो भाग करके, एक पुरुष और दूसरा स्त्री बनाया. स्त्री भाग से विराट रूप प्रजापति ने तप करके जिस पुरुष को उत्पन्न किया वही मैं, सारे विश्व का बनाने वाला हूँ. ऐसा आपलोग जानिए. मैंने प्रजासृष्टि की इच्छा से कठिन तप करके पहले दश महर्षियों को उत्पन्न किया. उनके नाम इस प्रकार हैं- मरीचि, अत्री, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेतस, वशिष्ठ, भृगु और नारद.
इन दश प्रजापतियों ने दुसरे प्रकाशमान सात मनुष्यों को, देवता और उनके निवास स्थानों को, ब्रह्म ऋषि को पैदा किया और यक्ष, राक्षस, पिशाच, गन्धर्व, अप्सरा, असुर, नाग, सर्प, सुपर्ण, गरुड़ आदि और पितरों को उत्पन्न किया. विद्युत्-बिजली, मेघ, रोहित-एक विचित्र वर्ण दंडाकार आकाश का चिन्ह, इन्द्रधनुष, उल्का जो आकाश से रेखाकार ज्योति गिरती है, निर्घात उत्पात शब्द, केतु-पूंछदार तारा और नाना भांति के ज्योति ध्रुव, अगस्त्य आदि को उत्पन्न किया. किन्नर, अश्वमुख, नरदेह, वानर, मत्स्य, तरह-तरह के पक्षीगण, पशु, मृग, मनुष्य, सर्प, ऊपर-नीचे दांतवाले जीव, कृमि, कीट, पतंग, जूका, मक्खी, खटमल और सम्पूर्ण काटनेवाले छोटे जीव मच्छर आदि, मेरी आज्ञा और अपनी तपस्या से मरीचि आदि महात्माओं ने इस स्थावर, जंगम विश्व को कर्मानुसार रचा है. (श्लोक २५-४१)
क्रमश:
संकलन : मनोज चतुर्वेदी शास्त्री
क्रमश:
संकलन : मनोज चतुर्वेदी शास्त्री