मनुष्यों के एक वर्ष में देवताओं का अहोरात्र होता है. उसमें उत्तरायण दिन दक्षिणायन रात है. ब्रह्म अहोरात्र और चारों युगों का प्रमाण इस प्रकार है- मनुष्यों के ३६० वर्ष का १ देववर्ष होता है. ऐसे चार हजार वर्षों को कृतयुग कहते हैं और उसकी संध्या (युग का आरम्भकाल) और संध्यांश (युग का अन्तकाल) दोनों चार सौ ४०० देववर्ष का कृतयुग होता है. अर्थात ४८००x३६०=१७२८००० वर्ष उसका मान है. बाकी त्रेता, द्वापर और कलि इन तीनों के संध्या और संध्यांश के साथ जो संख्या होती है, उसमें हजार में की और सैंकड़े में की एक-एक संख्या घटाने से तीनों की संख्या पूरी होती है. इस प्रकार त्रेतायुग ३६००=१२९६०००. द्वापर= २४००=९६४००० कलि, १२००=४३२००० मान होते हैं. यह जो पहले चारों युगों की बारह हजार १२००० देववर्ष संख्या कही है, यह एक देवयुग का मान है. ऐसे हजार देवयुगों का ब्रहम का १ दिन और उतनी ही रात होती है. अर्थात दो हजार देववर्षों का ब्रहम का अहोरात्र होता है. १२००० वर्षों का एक युग, इसको १००० से गुना करने से १,२०००००० देववर्षों का ब्रह्म दिन और इतनी ही रात्रि हुई. इसे ३६० से गुणा करने से ४३२०००००० मानुपवर्षों का ब्रह्म दिन और उतनी ही रात्रि हुई. (श्लोक ५७-७८)
क्रमश:
संकलन : मनोज चतुर्वेदी शास्त्री
ॐ मनु महाराज कहते हैं- प्रजापति ने सृष्टि के पूर्व इस धर्मशास्त्र को बना कर मेरे को उपदेश दिया. फिर मैंने मरीचि आदि को बताया. यह समग्र शास्त्र भृगु आप लोगों को सुनायेंगे, जो कि मेरे से सम्पूर्ण पढ़ा है. उसके बाद मनु की आज्ञा पाकर महर्षि भृगु ने सब ऋषियों को कहा कि सुनो.
स्वयंभू मनु के वंश में छ मनु और हैं. उन्होंने अपने-अपने काल में प्रजा की सृष्टि, पालन आदि किया है. उनका नाम स्वरोचिष, औत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष और वैवस्वत हैं. अब मन्वन्तर आदि काल का मान कहते हैं- आँख की पलक गिरने का समय निमेश कहलाता है. १८ निमेष की एक काष्ठा नामक काल होता है. ३० काष्ठा की कला, ३० कला का मुहूर्त, ३० मुहूर्त का अहोरात्र होता है. मानुष और दैव अहोरात्र- दिन, रात का विभाजन करता है. उसमें प्राणियों के सोने के लिए रात और कर्म करने के लिए दिन होता है. मनुष्यों के एक मास का, पितरों का एक अहोरात्र होता है. उसमें कृष्णपक्ष का दिन कर्म करने और शुक्रपक्ष की रात्रि शयन करने के लिए है.
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February 6, 2024