ॐ अब इस धर्मशास्त्र में मनु ने, किन-किन विषयों को कहे हैं, उसकी संख्या बतलाते हैं- जगत की उत्पत्ति, संस्कारों की विधि, ब्रह्मचारियों के व्रताचरण, गुरुवन्दन, उपासना आदि, स्नानविधि, स्त्रीगमन, विवाहों के लक्षण, महायज्ञ-वैश्वदेवादि, श्राद्धविधि, जीवनोपाय, गृहस्थ के व्रतनियम, भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार, आ-शौचनिर्णय, दृव्यशुद्धि, स्त्रियों के धर्मोपाय, वानप्रस्थ आदि तपों के धर्म मोक्ष और सन्यास धर्म, राजाओं के सम्पूर्ण धर्म कार्यों का निर्णय साखी-गवाहियों से प्रश्नविधि, स्त्री-पुरुषों धर्म, हिस्सा-बाँट और जुआरी-चोरों का शोधन कहा गया है. (श्लोक १११-११५)
वैश्य और शूद्रों के धर्मानुष्ठान का प्रकार, वर्णसंकरों की उत्पत्ति, वर्णों का आपदधर्म और प्रायश्चितविधि, उत्तम, मध्यम, अधम इन तीन प्रकार के कर्मों से देहगति का निर्णय, मोक्ष का स्वरूप और कर्मों के गुणदोष की परीक्षा, देश धर्म, जाति का धर्म, कुल का धर्म जो परम्परा से चला आता है. पाखंडियों के कर्म, गण-वैश्य आदि के धर्म इस शास्त्र में भगवान मनु ने कहा है. (श्लोक-११६-११८)
जिस प्रकार, मनु से पूर्वकाल में मैंने पुछा, तब यह शास्त्र उन्होंने उपदेश किया. उसी प्रकार अब आप मेरे से सुनिए. (श्लोक-११९)
..प्रथम अध्याय समाप्त..
क्रमश:
संकलन : मनोज चतुर्वेदी शास्त्री