शाहीन बाग़ विपक्ष की देन है, जिसको कांग्रेस ने पुष्पित किया और आप ने पल्लवित किया। इसका बीज लगाया था खुद भाजपा ने, उसे पानी दिया कांग्रेस ने औऱ खाद दिया केजरीवाल एन्ड कम्पनी ने अब यह वृक्ष बन चुका है जिसके फल भी भाजपा खा रही है और फूल भी भाजपा ही सूंघ रही है।
आज की तारीख़ में शाहीन बाग़ विपक्ष के गले ही हड्डी बना हुआ है। न निगले बन रहा है और न उगले बन रहा है।
भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू हैं, अगर शाहीन बाग़ का धरना बिना शर्त ख़त्म होता है तो भी भाजपा को फायदा है, और अगर नहीं होता है तब भी भाजपा को ही फायदा होगा। फिलहाल तो फायदा यह है कि दिल्ली में जिस भाजपा का कोई नामलेवा नहीं था, आज उसकी तूती बोल रही है। हालांकि अभी भी केजरीवाल भाजपा के लिए गले की फांस बने हुए हैं औऱ मुमकिन है कि फिर से केजरीवाल मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन अबकी बार कांग्रेस के बिना आप की सरकार नहीं बनेगी। या फिर भाजपा और आप की सरकार बनेगी। अभी तक के हालातों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार नहीं बना पाएगी। भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के प्रयास में जुटी है, जबकि कांग्रेस केजरीवाल के गले की हड्डी बनी हुई है।
दिल्ली में मुख्य भूमिका सिक्खों की है, जो कि 35 प्रतिशत हैं, और मुस्लिम केवल 12 प्रतिशत हैं। दूसरा बड़ा वोटबैंक बिहार का है, जिसपर मनोज तिवारी की खास नज़र है।
केजरीवाल पूरी तरह से कामदार बने हुए हैं जबकि भाजपा और कांग्रेस नामदार की लड़ाई लड़ रहे हैं। जहां एक ओर कांग्रेस शीला दीक्षित के नाम पर गड़े मुर्दे उखाड़ने में लगी है, वहीं दूसरी ओर भाजपा नमो की माला जप रही है। अब थोड़ा समीकरण भाजपा के पक्ष में जा रहे हैं, जिसका मुख्य आधार “शाहीन बाग़” है। यह बात आप औऱ कांग्रेस दोनों ही भलीभांति जानते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून पर इस धरने-प्रदर्शन का कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला है, मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय को ही तय करना है और वहां पर भाजपा का पक्ष बेहद मज़बूत है।
अब शाहीन बाग़ में जमे लोगों को न तो उठाया जा सकता है औऱ न ही उन्हें बैठाए रखने का कोई राजनीतिक लाभ कांग्रेस को होता दिखाई दे रहा है।
दरअसल कांग्रेस और केजरीवाल को यह लगता था कि जब महिलाएं और बच्चे सड़कों पर आंदोलन करेंगे तो यह मुद्दा भाजपा के गले की हड्डी बन जायेगा और भाजपा को बैकफुट पर आना पड़ेगा लेकिन भाजपा ने उसी मुद्दे को विपक्ष के गले की हड्डी बना दिया।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बातचीत का आह्वान तो किया लेकिन केवल शंकाएं दूर करने के लिए, न कि मांगों को मानने या सुनने के लिए। यहां भी विपक्ष हार गया क्योंकि वह जानता है कि CAA को लेकर किसी के मन में कोई शंका नहीं है, शंकाएं तो खुद विपक्ष ने लोगों के मन में बैठा रखी हैं, जिन्हें वह किसी भी कीमत पर दूर नहीं करना चाहती है।
कुल मिलाकर शाहीन बाग़ भाजपा के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।