बसपा से निष्कासित एक पूर्व विधायक को लेकर क्षेत्र में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग जहां उन्हें भीम आर्मी से जुड़ने की सलाह दे रहे हैं तो वहीं कुछ दूसरे लोग उनके समाजवादी की राह पकड़ने का कयास लगा रहे हैं।
प्रश्न यह नहीं है कि कौन सही है या कौन ग़लत है। बल्कि सवाल यह है कि आज के राजनीतिक समीकरण क्या हैं। फिलहाल राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि सपा-बसपा का गठबंधन तय है। सुनने में आया है कि सपा और बसपा दोनों मिलकर 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि बाकी की छह सीटें दूसरे दलों को दी जाएंगी। इस गठबंधन से कांग्रेस का नाम बाहर कर दिया गया है।
यानी उत्तर प्रदेश में चुनाव त्रिकोणीय होने की पूर्ण संभावना है। एक पक्ष सपा-बसपा का, दूसरा कांग्रेस का और तीसरा भाजपा का। कुल मिलाकर तीसरा मोर्चा (थर्ड फ्रंट) खोल दिया गया है।
अब सवाल यह है कि यदि बसपा से निष्कासित पूर्व विधायक को बसपा पुनः शामिल करती है, तब यह सबसे बेहतर है। लेकिन इसके विपरीत यदि बसपा में पुनर्वापसी सम्भव नहीं हो पाती है, तब इन पूर्व विधायक महोदय के पास केवल दो ही ऑप्शन बचते हैं। पहला कांग्रेस और दूसरा भाजपा, यानी राजग या यूपीए। भाजपा में शामिल होने का अर्थ है खुदकुशी, इसलिए केवल एक ही ऑप्शन बचता है, कांग्रेस।
मतलब यह कि कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प बचता है। भीम आर्मी या अन्य कोई भी दल किसी भी तरह से एक बेहतर विकल्प नहीं हो सकता।
इसलिए सबसे अच्छा विकल्प केवल और केवल कांग्रेस है। लेकिन बसपा सन्गठन के भीतरी सूत्रों से यह ख़बर मिल रही है कि शायद पूर्व विधायक की वापसी जल्द ही हो सकती है।
बहरहाल, कल क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। परंतु फिलहाल परिस्थितियां पूर्व विधायक के पक्ष में बनती नज़र आ रही हैं।
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*