भारत में राष्ट्रवादी विचारों के प्रथम व्यवस्थित व्याख्याता सम्भवतः बंकिमचन्द्र चटर्जी थे. उनके विचारों की निर्मिती में बंगला भाषा में अनुदित भगवद्गीता की महत्वपूर्ण भूमिका रही. बंकिमचंद चटर्जी का मानना था कि “भारत के लोगों में अपने राष्ट्र तथा उसके हित के प्रति एकचित्त भक्ति हो. राष्ट्र के प्रति चिंता तथा प्यार के बिना कोई राष्ट्र अपने अस्तित्व को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता. राष्ट्रवाद का उनका चिन्तन हिन्दू धर्म में लिपटा हुआ था”. उनका मानना था कि “हिन्दुओं की सबसे बड़ी कमी उसके समाज का जाति, भाषा, क्षेत्र, यहाँ तक कि धर्म के आधार पर भी विभाजित होना है. इसे वो “हिन्दुओं की सांस्कृतिक कमजोरी” कहा करते थे. उनका मानना था कि हिन्दुओं की इस कमजोरी को दूर किये बिना हिन्दुओं का कभी उद्धार नहीं हो सकता और न ही भारत एक सम्पूर्ण राष्ट्र के रूप में परिवर्तित हो सकता है.”
बंकिमचन्द्र चटर्जी ने दो प्रमुख एवं सशक्त धाराओं के प्रति अनुकूल अभिव्यक्ति की, एक थी लोकतंत्र और दूसरी राष्ट्रवाद. बंकिमचन्द्र चटर्जी का मानना था कि “अधिकारों का परम आधार सत्ता है. इस संसार में निर्बल की कहीं सुनवाई नहीं होती. यदि किसी के पास शक्ति है, तो अधिकारों की समानता भी होनी चाहिये. कोई भी व्यक्ति अधिकार के बिना संतुष्ट नहीं हो सकता. सभी के लिए प्रगति, उन्नति का मार्ग खोलने के लिए अधिकारों की समानता आवश्यक है”.
उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक थी “आनंदमठ”, जिसका प्रकाशन १८८२ ईसवी में किया गया था. इस पुस्तक में यह कल्पना की गई है कि “आनंदमठ” मातृभूमि का मंदिर है. मातृभूमि को जो दासता से मुक्त करने की शपथ लेते हैं, वे उसकी सन्तान हैं. सभी सन्तानें एक-दुसरे के लिए अभिवादन का शब्द “वंदेमातरम्” होगा. जब कोई व्यक्ति माता की सन्तान की शपथ लेता तो वह “वंदेमातरम्” गाकर उस शपथ को लेता था.
१८७० के दौरान अंग्रेजों ने “गॉड सेव द क्वीन” गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था. तब इसके विकल्प के तौर पर “वंदेमातरम्” गीत की रचना बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा ७ नवम्बर १८७६ को बंगाल के कांतल पाड़ा नामक गाँव में की थी. वंदेमातरम् गीत के दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांगला में थे. इस गीत को बाद में “आनंदमठ” पुस्तक में जोड़ा गया. इस उपन्यास में यह गीत भवानंद नामक सन्यासी द्वारा गाया गया है. इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी. जब अरविंदो घोष ने अंग्रेजी में और आरिफ मुहम्मद खान ने उर्दू में इसका अनुवाद किया. १९०६ में पहली बार “वंदेमातरम्” गीत देवनागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया.
लाला लाजपत राय ने लाहौर से “वंदेमातरम्” नामक एक जर्नल का प्रकाशन किया. अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़ने वाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हजारा के जुबान पर आखिरी शब्द “वंदेमातरम्” ही थे. १९०७ में मैडम भिकाजी कामा ने जब जर्मनी में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में वंदेमातरम् ही लिखा हुआ था. १४ अगस्त १९४७ की रात संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारम्भ “वंदेमातरम्’ के साथ और समापन “जन मन गन” के साथ हुआ. १५ अगस्त १९४७ को प्रातः ६:३० बजे आकाशवाणी से पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का रागदेश में निबद्ध “वंदेमातरम्” के गायन का सजीव प्रसारण हुआ था. पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का यह गीत “द ग्रामोफोन कम्पनी ऑफ़ इंडिया” के रिकार्ड संख्या STC ०४८ ७१०२ में मौजूद है. आज भी “आकाशवाणी” के सभी केंद्र का प्रसारण ‘वंदेमातरम्’ से ही होता है. १५ सितम्बर १९५९ को जब दूरदर्शन शुरू हुआ तो सुबह-सुबह शुरुआत “वंदेमातरम्” से ही होती थी. २००३ में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक सर्वे में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिए दुनिया भर से लगभग ७००० गीतों को चुना गया था और बीबीसी के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था, उसमें वन्देमातरम शीर्ष के १० गीतों में दुसरे स्थान पर था.
२४ जनवरी १९५० को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि स्वतंत्रता संग्राम में “वंदेमातरम्’ गीत की उल्लेखनीय भूमिका को देखते हुए इस गीत के प्रथम दो अंतरों को “जन मन गन’ के समकक्ष मान्यता दी जाये. डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का यह निर्णय सुनाया. इस शब्द “वन्देमातरम” का ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि सभी देशभक्त एक-दुसरे का अभिवादन “वन्देमातरम” कहकर करते, सभी राजनीतिक सभाओं में वंदेमातरम् गया जाता था. और सत्य तो यह है कि “वंदेमातरम्” शब्द ही “राष्ट्रवाद का घोष” बन गया. यह राष्ट्रवाद का मन्त्र बन गया था. अनगिनत शहीद जिसमें भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक़उल्ला खान शामिल थे, ने “वंदेमातरम्” गाते हुए, फांसी पर झूल गए. कांग्रेस ने वन्देमातरम पर विभाजन को रोकने के लिए गाँधी, नेहरु, अबुल कलाम आजाद और सुभाष चन्द्र बोस को लेकर १९३७ में एक समिति बनाई थी जिसने इस गीत पर आपत्तियां आमंत्रित कीं.
कांग्रेसी नेता रफ़ी अहमद किदवई ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था “जनाब जिन्ना ने कांग्रेस इसलिए नहीं छोड़ी थी कि वन्देमातरम गीत इस्लाम विरोधी है, बल्कि उनके कांग्रेस छोड़ने के पीछे कारण यह था कि उन्हें स्वराज की अवधारणा स्वीकार नहीं थी.” १९३० के दशक में बंगाल के नामी लेखक रीजाउल करीम ने वन्देमातरम और आनंदमठ की समीक्षा करते हुए लिखा था कि वंदेमातरम् मुद्दे पर अंग्रेजों की शह पर मुस्लिम लीग जो कर रही थी उसका मुख्य कारण था मुसलमानों को स्वतंत्रता संग्राम से बाहर निकालना और इस तरह आजादी के आन्दोलन की एकता पर चोट करना. उन्होंने लिखा, “ इस गीत ने गूंगों को जबान और कलेजे के कमजोर लोगों को साहस दिया. जवाहर नेहरु ने लिखा, “ वंदेमातरम् शक्ति का नारा बन गया है जिससे हमारी जनता को प्रेरणा मिलती है. यह अभिवादन का मुहावरा बन गया है जो हमें राष्ट्रिय स्वतंत्रता के अपने संघर्ष की याद दिलाता है. महात्मा गाँधी ने १९३९ में कहा था, “वंदेमातरम् एक शक्तिशाली युद्धघोष है और मैं अपनी नौजवानी के दिनों में इस गीत से अभिभूत था. मुझे कभी नहीं लगा कि यह एक हिन्दू गीत है अथवा इसे सिर्फ हिन्दुओं के लिए रचा गया है. यह गीत कभी निस्पंद नहीं हो सकता. यह करोड़ों के हृदय में अंकित हो चूका है”.
स्रोत – १. “भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन” (ज्ञान सदन प्रकाशन) जिसके (लेखक मुकेश बरनवाल).
२. https://hindi.news18.com
३. सत्याग्रह