आचार्य चाणक्य सहित अनेकों विद्वानों का यह मत है कि सफल होने के लिए अच्छे मित्रों की आवश्यकता होती है और सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए बुद्धिमान शत्रु की ही आवश्यकता होती है। इसलिए यदि आपका विरोधी साहसी, कर्मठ और बुद्धिमान है तो सदैव उसे अपने सम्मुख रखो और यदि मूर्ख है तो उसपर कोई ध्यान मत दो। क्योंकि मूर्ख व्यक्ति से न तो मित्रता अच्छी होती है और न ही शत्रुता। मित्रता और शत्रुता सदैव बुद्धिमान व्यक्ति से ही करनी चाहिए, विशेषकर राजनीति में।
क्योंकि राजनीति में विरोधी का बहुत महत्व है, यदि आपका मित्र और विरोधी दोनों ही बुद्धिमान हैं तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। राजनीति में विरोधी और विरोध ही तो सदैव आपको जीवित रखता है, जिसका कोई विरोधी नहीं होता वह राजनीति में शून्य हो जाता है या यूं कहिए कि शत्रुविहीन राजनितिज्ञ मुर्दे के समान होता है।
किसी व्यक्ति की ताक़त का अंदाजा लगाना हो तो सदैव उसके शत्रुओं पर विचार करो, जिसके शत्रु ताकतवर होंगे वही व्यक्ति ताकतवर होगा, क्योंकि कमजोर इंसान का कोई शत्रु नहीं होता। जिसकी कोई औक़ात नहीं होती उसका कोई विरोध भी नहीं करता, विरोध भी उसी का होता है जिसकी कोई औक़ात होती है।
इसलिए यह मत सोचो कि कितने लोग आपका विरोध करते हैं बल्कि यह देखो कि विरोध करने वाले लोग कौन हैं, उनकी हैसियत क्या है, उसकी औकात क्या है। क्योंकि तुम्हारे दुश्मन की औकात ही तुम्हारी हैसियत तय करती है।
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”