युवा शायर दीपक ठाकुर अपनी शायरी सुनते हुए
तेरा मुझमें यूं खो जाना, समंदर में लहरों का खो जाने जैसा लगता है.
तेरा मुझसे यूं गले मिल जाना, जिस्मों का नहीं ,,,,, रूह के मिल जाने जैसा लगता है..
तेरा मुझसे यूं ख्वाबों में ही मिलना, ज़िंदगी की हक़ीक़त से परे सा लगता है.
उनका मुस्कुराना किसी से तोहफे से कम न था.
उनका दीदार हो जाना, ख़ुदा-ए-दीदार हो जाने से कम न था..
उनका मेरी ज़िंदगी में आना, किसी मंजिल को हासिल कर लेने से कम न था.
मगर यूं अचानक,
उनका मेरी ज़िंदगी से बेरूख़ जाना, किसी मौत के फरमान से कम ना था…..
-दीपक ठाकुर
ज़िंदगी है एक पहेली, उलझने हैं इसमें हज़ार
इन उलझनों को तू सुलझाते जा.
ज़िंदगी अपने खुशहाल बनाते जा. लाख आये मुश्किलें तेरी राह में
तू उनका सामना कर और बेफ़िक्र हो कर ज़िंदगी अपनी तू जीते जा..
-दीपक ठाकुर
दूर कहीं शमशान से, आई एक आवाज़, जो कह रही थी कुछ लफ्जों में,
ज़िन्दगी की एक सच्ची बात, क्यों भटक रहा है बंदे तू दरबदर।
आखिर तुझे एक दिन मेरे ही पास आना है, हाँ ये नहीं कहता मैं के अभी आजा, कर ले जो मंजिलें हासिल करना चाहता है.
मगर करना ना कभी गुरुर इस बात का, कि तुझसे ऊपर कोई नहीं,
याद रखना ए बंदे तू एक मिट्टी का पुतला है.
और आखिर मिट्टी में ही मिल जाना है.
तुझे लौट कर एक दिन मेरे ही पास आना है…
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Sayeri hai yh to pata chala magar Hindu hai ya Urdu samjh nahi araha hai.
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