संसार में पवित्र हिमालय प्रसिद्द है. इसमें एक योजन चौड़ा और पांच योजन घेरेवाला मेरु पर्वत है, जहाँ पर मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है. यहीं से ऐरावती, वितस्ता, विशाल देविका और कुहू आदि नदियाँ निकलती हैं. यहीं पर ब्राह्मण उत्पन्न हुए हैं.
ब्राह्मण सभी एक हैं, सभी परमपिता ब्रह्म की संतान हैं. ब्राह्मण उत्पत्ति मार्तंड के पृष्ठ संख्या ४४९ में पंडित हरिकृष्ण शर्मा ने साफ लिखा है कि पहले विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा भये, ब्रह्मा का ब्रह्मऋषि नाम करके पुत्र भया, उसके वंश में पारब्रह्म नामक पुत्र भया, उसका कृपाचार्य पुत्र भया, कृपाचार्य के दो पुत्र भये, छोटा पुत्र शक्ति भया, शक्ति के पांच पुत्र भये, पाराशर प्रथम पुत्र से पारिक भये, दुसरे पुत्र सारस्वत के सारस्वत भये, तीसरे ग्वाला ऋषि से गौड़ भये, चौथे पुत्र गौतम से गुर्जर गौड़ भये, पांचवे पुत्र श्रृंगी से उनके वंश शिखवाल भये, छठे पुत्र दाधीच से दायमा या दाधीच भये.
पंडित छोटेलाल शर्मा ने अपने ब्राह्मण निर्णय में ब्राह्मणों के ३२४ भेद लिखे हैं. जाति भास्कर आदि ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मणों के ५१ भेद हैं. वैदिक काल में और उसके बहुत समय बाद तक किसी के साथ ऐसी उपाधि लगती नहीं दिखाई देती. केवल नामों का ही उल्लेख मिलता है. जैसे कश्यप, नारद, वशिष्ठ, पराशर, शांडिल्य, गौतम आदि, बाद में मनु के चारों वर्णों के चार आस्पदों का उल्लेख मिलता है. बहुत समय के पश्चात गुण, कर्म और वृत्ति के सूचक तथा प्रशासकों, राजा-महाराजाओं द्वारा प्रदत्त उपाधियों का प्रयोग होने लगा. अधिकांश उपाधियाँ मुस्लिमकाल में प्रचलित हुईं. स्मृति और पुराणों के युग के बाद ब्राह्मणों की भट्ट और मिश्रा उपाधियाँ अधिक मिलीं. महाराजा गोविन्द चंद्रदेव आदि गहखार राजाओं के समय ठाकुर और राउत पदवी भी ब्राह्मणों के लिए प्रयुक्त होने के प्रमाण मिलते हैं. मिश्रा, पाण्डेय, शुक्ल, द्वेदी, चतुर्वेदी आदि उपाधियाँ शासन द्वारा प्रदत्त हैं. जो पाण्डेय, द्वेदी आदि उपाधिधारी थे वे बाद में शासन द्वारा राय, सिंह, चौधरी आदि हो गए. मुस्लिम शासन के समय मियां, खान उपाधियाँ ब्राह्मणों को दी गईं. तानसेन मिश्र को मियां की उपाधि दी गई थी.
वेद पढने-पढ़ाने से दिवेदी(दुबे), त्रिवेदी(तिवारी), चतुर्वेदी(चौबे) हो गये. अध्यापक होने से पाठक, उपाध्याय हुए, यज्ञादि कर्मानुष्ठान कराने से वाजपेयी, अग्निहोत्री, अवस्थी, दीक्षित और स्मृति कर्मानुष्ठान कराने से मिश्र, शुक्ल वंश के पुरुष के नाम से शांडिल्य (सान्याल), पदवी के नाम से चक्रवर्ती, मुखर्जी, चटर्जी, बनर्जी, गांगुली, भट्टाचार्य. कार्य और गुण के कारण से आचार्य, नैगम आदि हुए. वेद की पद, क्रम, जटा, माला, रेखाध्वज, दंडरथ और धनपाठ आदि आठ पद्धतियों में से तीन प्रकार के पाठ करने वाले त्रिपाठी कहलाये.
डॉ. रामेश्वर दत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक “ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान’ के मुखपृष्ठ पर अंकित ब्रह्मरुपी वृक्ष में १४ शाखाएं हैं और इन चौदह शाखाओं में अलग-अलग ब्राह्मणों का वर्णन किया गया है. १. गौड़ आदि गौड़, बंगाली और त्यागी २. सारस्वत, कुमदिये, जेटली, झिगन, त्रिखे, मोहले, कश्मीरी ३. खंडेलवाल, दायमा, पुष्करणा, श्रीमाली, पारीक, पालीवाल, चौरसिया. ४. कान्यकुब्ज, भूमिहार, सरयूपारीण, सनाढ्य, जिझौतिया 5. मैथल, श्रोत्रिय ६. उत्कल, मस्ताना ७. सुवर्णकार, पांचाल, शिल्पयान, जांगड़ा, धीमान ८. गोस्वामी, आचार्य, डाकोत, वैरागी, जोगी, ब्रह्मभट ९. कौचद्विपी, शाकद्विपी १०. करणाटक ११. तैलंग, बेल्लारी, बगिनाड, मुर्किनाड १२. द्राविड, नम्बूदरी १३. महाराष्ट्र चितपावन १४. गुर्जर, गुर्जर गौड़ नागर, तथा देसाई
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उपरोक्त लेख “पारिक समाज.कॉम” में प्रकाशित मूल लेख “ब्राह्मण जाति का इतिहास एवं परिचय” के सम्पादित अंश हैं.
सम्पादन – मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”