चांदपुर के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन होता है और सीट लोकदल के खाते में जाती है तो मौहम्मद इक़बाल उर्फ इक़बाल ठेकेदार को टिकट मिलने की बहुत अधिक संभावना है। उधर कुछ लोग मौहम्मद इक़बाल को अभी भी बहुजन समाज पार्टी का मज़बूत उम्मीदवार मानकर चल रहे हैं। इस विषय में खुद पूर्व बसपा विधायक मौहम्मद इक़बाल साहब का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। अभी तक केवल कयास ही लगाए जा रहे हैं।
मौहम्मद इक़बाल ने 2002 में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में की थी। उस समय उन्हें कुल 35, 228 वोट मिले थे। उस समय उनका वोट प्रतिशत 20.8 8 रहा था और वह तीसरे नम्बर पर आए थे। जबकि उस समय पंकज चौधरी समाजवादी के उम्मीदवार थे जो कि चौथे नम्बर पर आए थे। 2002 के इस चुनाव में स्वामी ओमवेश ने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा था और वह 60, 595 वोट लेकर विधानसभा पहुंच गए थे। और उनका वोट प्रतिशत 35.91 था। यहां यह उल्लेखनीय है कि 2002 में मुस्लिम समाज में स्वामी ओमवेश का काफी दबदबा था और उस समय क्षेत्र में उनका ख़ूब डंका बजा करता था।
2007 के चुनाव में मौहम्मद इक़बाल ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 58,808 वोट लेकर वह पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। इस बार उनका वोट प्रतिशत 35.91 था। जबकि इस चुनाव में स्वामी ओमवेश तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। उन्हें कुल 27, 705 वोट मिले थे और उनका वोट प्रतिशत 16.92 था।
2012 में मौहम्मद इक़बाल ने पुनः बसपा का परचम लहराते हुए 54, 941 वोट प्राप्त किए थे।हालांकि इस बार उनका वोट प्रतिशत मात्र 29.20 रह गया था। इस चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के शेरबाज पठान को हराया था, और उस समय शेरबाज पठान को 39, 928 वोट मिले थे, और उनका वोट प्रतिशत 21.22 प्रतिशत था।
2017 में बसपा ने एकबार फिर से मौहम्मद इक़बाल पर अपना दांव लगाया और इस बार उन्हें कुल 56, 696 वोट मिले लेकिन इस बार उनको वर्तमान भाजपा विधायक श्रीमती कमलेश सैनी से 35,649 वोट से करारी हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन यहां उल्लेखनीय है कि 2017 में पूरे देश में जबरदस्त “मोदी लहर” थी। और उस दौरान कई दिग्गजों को पराजय का कड़वा स्वाद चखना पड़ा था।
अब 2022 में एक बार फिर से मौहम्मद इक़बाल को लेकर क्षेत्र में चर्चाओं का दौर जारी है। लेकिन इस बार अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि मौहम्मद इक़बाल किस झंडे के साथ चुनाव लड़ेंगे।
हालांकि सूत्रों का कहना है कि मौहम्मद इक़बाल और उनके समर्थक लगातार क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं, और इस दौरान उन्हें जनता का सहयोग भी मिल रहा है।
लेकिन टिकट को लेकर अभी भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है। दरअसल मौहम्मद इक़बाल की राजनीतिक धुरी मुस्लिम वोट पर टिकी हुई है। और न केवल चांदपुर विधानसभा अपितु सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश में मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर दिखाई दे रहा है। चर्चा है कि अभी बसपा को लेकर मुस्लिम समुदाय में थोड़ा नाराज़गी दिखाई दे रही है। पूरे क्षेत्र में किये गए एक गोपनीय सर्वे में हमने पाया कि अभी तक मुस्लिम समाज में बुआ के मुकाबले भतीजे का पलडा काफ़ी भारी दिखाई पड़ रहा है।
ऐसे में मौहम्मद इक़बाल जैसे कुशल रणनीतिकार और अनुभवी राजनीतिज्ञ के लिए भी यह बेहतर ही होगा कि – तेल देखो और तेल की धार देखो। जिसे वेट एंड वाच की राजनीति कहा जाता है।
हालांकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस बार एक वर्ग विशेष उम्मीदवार विशेष को नहीं बल्कि उस व्यक्ति को वोट देना पसंद करेगा जो कि भाजपा को हराने में सक्षम होगा।
बहरहाल, अभी लखनऊ बहुत दूर है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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