मैं बड़ी विनम्रता किंतु दृढ़तापूर्वक कहना चाहता हूं कि प्रत्येक हिन्दू समाज के व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और संघ संचालक परम् आदरणीय श्री मोहन भागवत कोई ईश्वरीय अवतार नहीं हैं, बल्कि हमारी-आपकी तरह से एक साधारण मनुष्य ही तो हैं। भाजपा कोई देवताओं की सभा नहीं है और न ही स्वयं सेवक संघ को ऋषि-मुनियों की मंडली माना जा सकता है।
अतः हमारा धर्म, हमारी आस्था और धर्मशास्त्रों को कौन पढ़ाएगा, उसका ज्ञान कौन देगा और उसपर शास्त्रार्थ करने की अनुमति किसको दी जा सकती है, इसपर निर्णय करने का पूरा अधिकार हम सभी सनातनभक्तों और वैदिक लोगों को है। यह अधिकार किसी राजनीतिक संगठन अथवा किसी संगठन विशेष को नहीं दिया जा सकता।
हमारे वेदों, उपनिषदों, संस्कारों, कर्मकांडों, हमारी संस्कृति और हमारे रीति-रिवाजों के विषय में उपदेश करने का अधिकार केवल और केवल उसी व्यक्ति को दिया जा सकता है जो हमारे धर्म का है, जिसने वेदों को न केवल पढ़ा है अपितु उसकी शिक्षा-दीक्षा को ह्रदय से अंगीकार किया है।
वह प्रत्येक व्यक्ति जो गायत्री मंत्र को न केवल पढ़ना जानता है बल्कि गायत्री मंत्र का प्रतिदिन ह्रदय से शुद्धता के साथ उच्चारण भी करता है और उसके भाव को ह्रदय से स्वीकार करता है, जो व्यक्ति हमारे धर्म को धारण करता है वही और केवल वही व्यक्ति इस योग्य माना जा सकता है कि वह हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ी को वेद, पुराण, उपनिषद, श्रीमद गीता और हमारे अन्य समस्त धर्मशास्त्रों का ज्ञान-उपदेश कर सके।
यह कदापि स्वीकार करने योग्य नहीं हो सकता कि हम केवल राजनीतिक हितों को साधने और निज स्वार्थों की पूर्ति हेतु अपने धर्म, अपनी सभ्यता, अपने विश्वास, अपने पूर्वजों के नियम-सिद्धान्तों, अपने संस्कारों और अपनी मान्यताओं की उपेक्षा करने लगें, उनका तिरस्कार करने लगें।
सत्ता के माध्यम से धर्म को बढ़ाने और धार्मिक ज्ञान को विस्तारित करने का प्रयास किया जाना चाहिए, उसे नष्ट-भ्रष्ट करने का कुप्रयास अथवा षड्यंत्र नहीं रचना चाहिए।
ॐ धर्मो रक्षति रक्षितः का मूल मंत्र सदैव स्मरण रखना चाहिए।
लेखक-पण्डित मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”