महात्मा गाँधी ने कहा था कि “अगर कोई हमारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो हमें दूसरा गाल भी उसके आगे कर देना चाहिए”.
१० मई, १९५७ को दिल्ली के रामलीला मैदान में जब पूरा देश १८५७ की क्रांति का शताब्दी समारोह मना रहा था, उस समय दिए गए के भाषण में वीर सावरकर ने कहा था- “हमारे सामने दो आदर्श हैं, एक आदर्श है बुद्ध का और दूसरा है युद्ध का. हमें दोनों में से एक को अपनाना होगा. यह हमारी दूरदर्शिता पर है कि हम बुद्ध की आत्मघाती नीति को अपनाएं या फिर युद्ध की विजयप्रदायिनी वीर नीति को.” यहाँ बुद्ध नीति का तात्पर्य “अहिंसा परमो धर्म” है जबकि युद्ध नीति का अर्थ “शठे शाठ्यम समाचरेत” से है.
राजनीतिक नेतृत्व के गलत निर्णयों के चलते १९६२ ईसवी में चीन के हाथों देश के अपमान से व्यथित होकर वीर सावरकर ने वेदना भरे शब्दों में कहा था- “काश अहिंसा, पंचशील और विश्वशांति के भ्रम में फंसे ये शासनाधिकारी मेरे सुझाव को मानकर सबसे पहले राष्ट्र का सैनिकीकरण कर देते तो आज हमारी वीर और पराक्रमी सेना चीनियों को पीकिंग तक खदेड़ कर उनका मद चूर-चूर कर डालती, किन्तु अहिंसा और विश्वशांति की काल्पनिक उड़ान भरने वाले ये महापुरुष जाने कब तक देश के सम्मान को अहिंसा की कसौटी पर कसकर परिक्षण करेंगे.”
महात्मा विदुर ने कहा था- “ कृते प्रतिकृति कुर्याद्विसिते प्रतिहिंसितम, तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यम समाचरेत..” अर्थात “जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो. जो तुम्हारी हिंसा करता है, तुम भी उसके प्रतिकार में उसकी हिंसा करो! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता ही करने में उपाय का पक्ष का लाभ है.”
श्रीकृष्ण ने कहा है कि- “ये हि धर्मस्य लोप्तारो वध्यास्ते मम पांडव. धर्म संस्थापनार्थ हि प्रतिज्ञेषा ममाव्यया..” अर्थात ‘हे पांडव! मेरी प्रतिज्ञा निश्चित है, कि धर्म की स्थापना के लिए मैं उन्हें मारता हूँ, जो धर्म का लोप करने वाले हैं’.
ऋग्वेद में भी कहा गया है- “मायाभिरिन्द्रमायिनं त्वं शुष्णम्वातिर:” अर्थात हे इंद्र! मायावी, पापी, छली तथा जो दूसरों को चूसने वाले हैं, उनको तू माया से पराजित करता है.
मोदी सरकार को यह तय करना ही होगा कि आज कश्मीर में जो हालात हैं, क्या उसके लिए गाँधी की अहिंसावादी नीति को अपनाना औचित्यपूर्ण है या फिर वीर सावरकर की युद्ध नीति को लागू करना समीचीन होगा? हालाँकि नरेन्द्र दामोदर मोदी को इस देश की जनता ने वीर दामोदर सावरकर के रूप में देखा था परन्तु लगता है कि मोदी जी को सावरकर नीति के स्थान पर गांधीवाद बेहतर लग रहा है. मोदी जी को यह समझ लेना चाहिए कि इस देश ने हमेशा शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्रों की भी पूजा की है.