एक बात जो निश्चित रूप से निर्विवाद है वह है कि हिंदुस्तान का मुसलमान पूरी दुनिया में हिन्दू ही कहलाता है. मेरा मानना है कि मुसलमान और हिन्दू कभी भी भाई-भाई नहीं हो सकते क्योंकि उनके धर्म, उनकी विचारधारा, उनकी संस्कृति, उनकी सभ्यता, उनके तीर्थस्थल और उनकी आइडियोलॉजी और उनके साहित्य सबकुछ अलग हैं. लेकिन यह बात हिन्दुस्तानी मुसलमान और हिन्दुओं पर लागू नहीं हो सकती. क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं, उनके कई रीति-रिवाज भी एक से ही हैं, उनके डीएनए भी एक ही होंगे. इस देश में दोनों एक-दुसरे से बहुत गहराई से जुड़े हैं. मिस्त्री, लुहार, नाई, धोबी, कुम्हार, बढ़ई, रंगरेज सहित एक मजदूर से लेकर एक ठेकेदार तक मुसलमान आपको मिल जायेंगे. आपके बाल काटने वाला मुसलमान, आपके घर में मजदूरी करने वाला मुसलमान, आपके घर की चिनाई करने वाला मुसलमान, आपकी दाढ़ी बनाने वाला मुसलमान, आपका पलंग बनाने वाला मुसलमान, आपके कपड़े धोने वाला मुसलमान, आपके कपड़े सिलने वाला मुसलमान, आपके घर की बिजली ठीक करने वाला भी मुसलमान, आपकी रिक्शा से लेकर कार ड्राईवर भी मुसलमान. आप कहाँ तक उसे अपने से अलग कर सकते हैं और कैसे.
तुम्हें गर शौक बिजलियाँ गिराने का,
हमारा काम भी है आशियाँ बसाने का.
सुना है आप हैं माहिर हवा चलाने में,
मगर हमें भी हुनर है दिए जलाने का.
आज भारत में कुछ विपक्षी दल जिन्ना की उस थ्योरी से सहमत हो सकते हैं जो १९४० ईसवी के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में मौहम्मद अली जिन्ना ने कहा था- “मुसलमानों और हिन्दुओं के धार्मिक मंतव्य, सामाजिक संगठन, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खानपान, साहित्यक व सांस्कृतिक परम्पराएँ सब एक-दूसरे से भिन्न हैं. न उनमें परस्पर विवाह होता है, न खाना-पीना. वस्तुतः हिन्दू और मुस्लिम सभ्यताएं आधारभूत रूप से एक-दुसरे से भिन्न हैं. दोनों सभ्यताओं का आधार परस्पर विरोधी विचारों और मान्यताओं पर है. हिन्दू और मुसलमान इतिहास की भिन्न-भिन्न धाराओं से प्रेरणा लेते हैं. उनकी कथाएं अलग हैं और साहित्य अलग हैं, महापुरुष अलग हैं और साहित्य अलग हैं. एक के लिए जो वीर व शहीद है, दुसरे के लिए वह शत्रु है. एक की विजय दूसरे की पराजय है.”
लेकिन दूसरी ओर इस देश में कुछ लोग मौलाना अबुल कलाम आजाद के उस वक्तव्य से भी सहमत होंगे जिसमें उन्होंने कहा था- “मैं मुसलमान हूँ, और गर्व के साथ अनुभव करता हूँ कि मुसलमान हूँ. किन्तु इन तमाम भावनाओं के अलावा मेरे अंदर एक और भावना है, जिसे मेरी जिन्दगी की वास्तविकताओं ने पैदा किया है. इस्लाम की आत्मा मुझे उससे नहीं रोकती, बल्कि मेरा मार्ग प्रशस्त करती है. मैं अभिमान के साथ अनुभव करता हूँ कि “मैं हिन्दुस्तानी हूँ”.
अल्लामा इकबाल ने लिखा था- “मिट्टी की मूरतों में समझा है, तू ख़ुदा है. ख़ाके वतन का मुझको हर जर्रा देवता है..
ये देश आज भी उन लोगों की वजह से सुरक्षित है जो लोग खान बहादुर अल्लाह्बख्श के भाषण से पूर्णतया सहमत होंगे जिसमें उन्होंने कहा था- “भारतीय मुसलमानों का धर्म इस्लाम है, पर उनका वतन भारत है. जो मुसलमान भारत से हज करने के लिए मक्का जाते हैं, वहां के अरब लोग उन्हें “हिन्दू” कहकर पुकारते हैं. ईरान, अफगानिस्तान आदि मुस्लिम देशों में भारतीय मुसलमानों को हिन्दुस्तानी या हिन्दू ही कहा जाता है. विदेशियों की दृष्टि में सब भारतवासी इन्डियन हैं, चाहे वह हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि किसी भी धर्म के अनुयायी हों. भारत में ९० प्रतिशत मुसलमान पुराने भारतीयों के ही वंशज हैं, उनमें वही रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो कि हिन्दुओं में है. धर्म परिवर्तन के कारण किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता में परिवर्तन नहीं हो जाता. भारत के मुसलमानों का रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति आदि भी अन्य देशों के मुसलमानों से बहुत भिन्न है.”
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February 6, 2024