बसपा सुप्रीमों बहन कुमारी बहन मायावती ने उत्तरप्रदेश में असदुद्दीन ओवैसी साहब की पार्टी AIMIM से गठबंधन न करने का दूरअंदेशी फैसला लेकर एक बार पुनः यह सिद्ध कर दिया है कि बहन मायावती राजनीति की एक बेहद मंझी हुई खिलाड़ी हैं।
असदुद्दीन ओवैसी साहब उत्तरप्रदेश में पांव जमाने के लिए एक मज़बूत प्लेटफॉर्म की तलाश में हैं, जिसके लिए उनके पास बसपा से बेहतर कोई प्लेटफार्म नहीं हो सकता क्योंकि BSP और AIMIM दोनों ही पार्टियां “भीम-मीम” की राजनीति करती हैं। पिछले कुछ समय में मुस्लिम समाज में ओवैसी साहब जैसे फायरब्रांड नेताओं का कद काफ़ी बढ़ा है। लेकिन ओवैसी साहब पर यह इल्ज़ाम है कि वह भाजपा की B पार्टी हैं, हालांकि ओवैसी साहब और भाजपा दोनों ही इस बात को सिरे से नकारते हैं। उधर दलितविरोधी पार्टियां लगातार यह आरोप भी लगा रही हैं कि BSP और BJP अप्रत्यक्ष रूप से गठबंधन कर चुकी हैं, जिसे बहन मायावती कई बार सिरे से ख़ारिज कर चुकी हैं। ऐसे में अगर BSP असदुद्दीन ओवैसी।साहब से हाथ मिलाती हैं तो दलितविरोधी पार्टियों का आरोप और भी मजबूती पकड़ लेगा और यह किसी भी प्रकार से BSP के हित में नहीं हो सकता।
बहन मायावती किसी भी सूरत में यह भी नहीं चाहेंगी कि उनके दलित वोटबैंक में कोई सेंध लगाए और वह बेहतर जानती हैं कि इस समय AIMIM के पास इतना मज़बूत मुस्लिम वोटबैंक नहीं है जिसका कोई फ़ायदा BSP को मिल सके। अलबत्ता यह हो सकता है कि AIMIM जैसी कट्टरपंथी पार्टी से गठबंधन करने से BSP को मिलने वाला थोड़ा बहुत ब्राह्मण वोट भी उनसे दूर जा सकता है। और यदि ऐसा होता है तो BSP को बहुत नुकसान हो सकता है।
असदुद्दीन ओवैसी साहब एक कट्टरपंथी नेता हैं, और उत्तरप्रदेश में उनके राह में सबसे बड़ी रुकावट है, समाजवादी पार्टी। ओवैसी साहब को BSP या BJP से कोई ख़तरा नहीं है। क्योंकि जिस मुस्लिम वोटबैंक पर असदुद्दीन ओवैसी साहब की निगाह है वह अभी तक समाजवादी पार्टी से जुड़ा हुआ है। क्योंकि प्रदेश का मुसलमान अभी तक भी “मुल्ला” मुलायम सिंह जी को ही अपना सच्चा हमदर्द मानता है और दूसरी तरफ़ आजम खान साहब की लकीर भी बड़ी है। इसलिए ओवैसी साहब के लिए जरूरी है कि वह आजम खान साहब जैसे मुस्लिम रहनुमाओं की लकीर को छोटा करें और उसके लिए उनसे बड़ी लकीर खींचें। औऱ बड़ी लकीर खींचने के लिए ओवैसी साहब को सवारी भी बड़ी करनी होगी और इसीलिए उन्होंने “हाथी” को चुना है। लेकिन फिलहाल बहन मायावती की राजनीतिक दूरदर्शिता ने ओवैसी साहब के “हसीन सपनों” पर पानी फेर दिया है। लेकिन यह राजनीति है साहब, यहां वक़्त और ज़बान पलटते देर नहीं लगती।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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