मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चांदपुर जिला बिजनौर के एक AIMIM नेता के यहां हुई एक प्रेस कांफ्रेंस में जलीलपुर प्रथम वार्ड नं 28 से जिला पंचायत सदस्य सलीम अहमद की पत्नी ने समाजवादी पार्टी, बिजनौर के जिलाध्यक्ष राशिद हुसैन के सुपुत्र नवेद पर बेहद शर्मनाक हरकतें करने के आरोप लगाए हैं। मीडिया के हवाले से सलीम अहमद ने बताया कि सपा जिलाध्यक्ष राशिद हुसैन जिला पंचायत सदस्य सलीम पर काफी समय से सपा में शामिल होने का दबाव बना रहे थे, जबकि सलीम अहमद जो कि वर्तमान में AIMIM में हैं, इसके लिये इंकार कर रहे थे। आरोप है कि इससे बौखलाकर राशिद हुसैन के पुत्र नवेद द्वारा सलीम अहमद की पत्नी को उनके मोबाईल पर अश्लील और धमकी भरे सन्देश भेजे जाने लगे। तथा जब इसकी शिकायत राशिद हुसैन से की गई तो उन्होंने गुस्से में लालपीले होते हुए कहा कि “तुझे और तेरे पूरे परिवार को जान से मरवा दूँगा, या फिर किसी बड़े केस में फँसवाकर जेल भिजवा दूँगा”.
इस पूरे प्रकरण में हमारे पास अभी तक सपा जिलाध्यक्ष या उनके पुत्र की ओर से दी गई कोई सफाई सामने नहीं आई है और न ही हम जिला पंचायत सदस्य सलीम अहमद और उनकी पत्नी द्वारा लगाए गए किसी भी आरोप की पुष्टि करते हैं।
परन्तु यदि सलीम अहमद के आरोप सही हैं तो समाजवादी नेताओं का चरित्र बहुत स्पष्ट नज़र आता है। यूं भी जिस पार्टी के मुखिया ने बलात्कार जैसे जघन्यतम अपराध को “लड़कों की गलती” बता दिया था, उस पार्टी के अन्य नेताओं से नैतिकता और महिलाओं के सम्मान की कोई विशेष उम्मीद रखना भी बेमानी ही है।
अखिलेश यादव भले ही प्रदेश के अनुशासन और कानून व्यवस्था पर भाषण दे रहे हों लेकिन खुद उनकी ही पार्टी के नेता जहां-तहां अनुशासनहीनता का प्रदर्शन करते रहते हैं।
वैसे यह बहुत अजीब है कि एक तरफ अखिलेश जी छोटे-छोटे राजनीतिक दलों की ओर “चुनावी दोस्ती” का हाथ बढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर उनकी पार्टी के नेता असदुद्दीन ओवैसी जैसे दिग्गज “मुस्लिम हृदय सम्राट” की पार्टी के नेताओं की पत्नियों को कथित रूप से अश्लील और धमकी भरे मैसेज भेजकर उन्हें मानसिक प्रताड़ना देने में लगे हुए हैं।
यह तो वही कहावत हुई “मां फिरे चोथी-चोथी, पूत बिटौड़े बख़्श रहा”.
अपने को “मुस्लिमों का मसीहा” बताने वाली पार्टी के नेताओं को कम से कम मुस्लिम महिलाओं को तो बख़्श देना चाहिए। जिस पार्टी ने खुलेआम यह घोषणा कर दी हो कि केवल मुस्लिम बेटियां ही हमारी बेटियां हैं, उन्हें उन “मुस्लिम बेटियों” के मान-सम्मान की रक्षा तो करनी ही होगी, या फिर इसका अर्थ निकाला जाए कि समाजवादी पार्टी के मुस्लिम ही असल “मुसलमान” हैं बाकी सब यूं के यूं ही। मतलब अंधा बांटे रेवड़ी और अपनों-अपनो को दे। राशिद हुसैन जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता से तो कम से कम आम जनता यही उम्मीद रखती है कि वह अपनी “मुस्लिम बहनों” के आत्म-सम्मान की बख़ूबी रक्षा करेंगे।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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