जेम्स मिल पहला इतिहासकार था, जिसने भारतीय इतिहास को तीन भागों में बांटा था, जिसने उसे हिन्दूकाल, मुस्लिमकाल तथा ब्रिटिशकाल के नाम से पुकारा. कुछ इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के इस काल विभाजन को प्राचीन, मध्य और आधुनिक काल का नाम दिया. जेम्स मिल के इस विभाजित अध्ययन का एक नकारात्मक पहलू ये है कि उसने इस बंटवारे में हिन्दू संस्कृति या प्राचीन काल की कटु आलोचना की तथा उसे पिछड़ा हुआ और विवेकहीन बताया. उसने यत्र-तत्र मुस्लिम सभ्यता या मध्यकाल के प्रति थोड़ी बहुत आलोचना के साथ कुल मिलाकर हमदर्दी ही जाहिर की. जेम्स मिल के द्वारा किये गए भारतीय इतिहास के इस विभाजन को आधुनिक इतिहासकारों न केवल स्वीकार किया बल्कि उसको ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर दिया. अंग्रेजों ने अपने सम्राज्यवादी हितों को दृष्टिगत करते हुए भारत के इतिहास को लिखा. दुसरे शब्दों में अंग्रेजों का लिखा इतिहास साम्राज्यवादी विचारधारा से ओतप्रोत था.
हालाँकि कुछ विद्वान् अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति और उसके इतिहास का बहुत सूक्ष्म अध्ययन किया और भारतीय भाषाओँ विशेषतः संस्कृत भाषा का गहन अध्ययन किया. इन विद्वानों को प्राच्यवादी कहा गया. इन प्राच्यवादी इतिहासकारों ने न केवल भारतीय संस्कृति के प्रति व्यक्तिगत रुझान वरन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकारियों के द्वारा विजितों की संस्कृति को समझने की प्रशासकीय आवश्यकताओं के कारण भी यहाँ की सांस्कृतिक परम्पराओं को समझने की चेष्टा की. उन्हें इस कार्य में बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स का समर्थन व सहयोग प्राप्त हुआ. वारेन हेस्टिंग्स भारतीय चित्रों और पांडुलिपियों का संकलनकर्ता था. वारेन हेस्टिंग्स को श्रीमद-भगवद गीता ने बहुत प्रभावित किया जिसकी जानकारी उसके अपनी पत्नी को लिखे पत्रों से प्राप्त होती है. वारेन हेस्टिंग्स ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को पढने और समझने के लिए अपने शासनकाल में १५ जनवरी १७८४ को विलियम्स जोन्स के द्वारा कोलकाता स्थित फोर्ट विलियम्स में सुर्प्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर रॉबर्ट चैम्बर्स की अध्यक्षता में बुलाई गई एक मीटिंग में “एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल” की स्थापना कराई. इस संस्था के अंतर्गत सर्वप्रथम चार्ल्स विलिकिंस ने १७८४ इसवी में “श्रीमद भगवदगीता” का अंग्रेजी अनुवाद किया. उन्होंने ही १७८७ ईसवी में “हितोपदेश” का भी अंग्रेजी अनुवाद किया. विलियम जोन्स ने कालीदास की पुस्तक “अभिज्ञान शाकुंतलम” का १७८९ में, और जयदेव की पुस्तक “गीतगोविन्द” का १७९१ में अंग्रेजी अनुवाद किया.
इससे पहले नैथेनियल हैलडेड ने मात्र २३ वर्ष की आयु में “मनुस्मृति” का अंग्रेजी अनुवाद “ए कोड ऑफ़ जेंट्र लॉज” की रचना की थी. भारत आने वाले चार्ल्स विलिकिंस को भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा में गहरी रूचि थी. इसके अतिरिक्त एक अंग्रेज प्रशासक जोनाथन डंकन ने भी भारतीय संस्कृति में अपनी गहरी रूचि दिखाई.
किन्तु लार्ड मैकाले की यह सोच थी कि अंग्रेजी भाषा के चलन से ही भारत में एक ऐसा वर्ग जन्म लेगा जो कि रंग और रूप में तो भारतीय, लेकिन सोच से अंग्रेज होगा. लार्ड मैकाले ऐसे लोगों को “भूरे रंग का अंग्रेज” कहता था. आज ये कैसी विडम्बना है कि भारतीयों की संख्या न के बराबर हो गई है. अलबत्ता भूरे रंग के अंग्रेजों की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है. हम अपनी ही संस्कृति और सभ्यता के साथ-साथ अपनी देवभाषा संस्कृत को भूल बैठे हैं और पश्चिमी संस्कृति, सभ्यता और भाषा को अपनाने में लगे हैं. भारत विश्व का शायद इकलौता एक ऐसा देश है जो अपनी ही संस्कृति, सभ्यता और भाषा को हेय दृष्टि से देखता है और दूसरों की भाषा और संस्कृति को आधुनिक सभ्यता का प्रतीक मानता है.
मुख्य स्रोत- भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन (लेखक मुकेश बरनवाल)
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