सम्पूर्ण भारत में आपने कभी किसी का नाम विभीषण नहीं सुना होगा, औऱ न ही विभीषण का कहीं सम्मान होते हुए देखा होगा। जबकि सब जानते हैं कि विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त थे और स्वयं ब्रह्मा ने उन्हें धर्म उपदेश दिया था। आज भी विभीषण को धर्मात्मा माना जाता है लेकिन उसके बावजूद उनका सम्मान नहीं किया जाता। रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ नाम के व्यक्ति मिल जाते हैं, किन्तु विभीषण नामक व्यक्ति सम्पूर्ण भारत में कहीं नहीं मिलता। किन्तु भारत में विभीषण जैसी सोच के लोग बहुत मिल जायेंगे।
जब राम-रावण युद्ध चल रहा था, तब विभीषण अपने भाई कुम्भकर्ण के पास उसे राम के साथ मिलकर रावण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए मनाने पहुंचा।
विभीषण ने कुम्भकर्ण से कहा- भय्या, तुम धर्म और नेतिकता को समझो, और हमारे साथ आ जाओ।
कुम्भकर्ण बोले- प्रत्येक व्यक्ति का धर्म उसके देश, काल और परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है। धर्म सत्य है किंतु अटल नहीं।
विभीषण- नहीं, धर्म तो सर्वदा अटल ही है, और सत्य भी। यह कभी नहीं बदलता।
कुम्भकर्ण- विभीषण, इस समय तू राम के साथ है, इसलिए तेरा धर्म है कि तू उसका साथ दे, किन्तु मैं अपने देश, अपने भाई और अपने कुल के साथ हूँ, इसलिए मेरा धर्म उनकी रक्षा करना है, भले ही मेरे प्राण क्यों न चले जाएं।
विभीषण- परन्तु भय्या, रावण तो पापी है, दुराग्रही है, पराई स्त्री पर अपनी नज़र रखता है, ऐसे में आप उसका साथ क्यों दे रहे हैं। यह धर्म विरुद्ध है।
कुम्भकर्ण- मैं जानता हूँ, कि मेरा भाई रावण गलत कर रहा है, मैं यह भी जानता हूँ कि वह नीति विरुद्ध कार्य कर रहा है। परंतु वह फिर भी मेरा भाई ही है। *अच्छे के साथ तो सब अच्छे होते हैं, फिर भाई-बन्धु का क्या लाभ। वह मेरा भाई है, इस समय मेरे देश का राजा है और राम नीतिज्ञ होते हुए भी मेरे देश के लिए आक्रान्ता है। वह आक्रमण करने आया है, अतः मेरे लिए उससे अपने राजा, अपने देश अपने कुल और अपने भाई की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म, सबसे बड़ी नीति और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अतिरिक्त मुझे कोई और मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है।*
विभीषण- भय्या, अगर आप श्रीराम का साथ देंगे तो वह आपको लंका का राजा बना देंगे, युगों-युगों तक आपको रामभक्त के रूप में जाना जाएगा। आप सहस्त्र वर्षों तक जीवित रहकर सुख और समृद्ध रहेंगे। आपका नाम इतिहास में अमर हो जाएगा।
कुम्भकर्ण- विभीषण, मैं ऐसे ऐश्वर्यशाली और सुखी जीवन की अपेक्षा अपने कुल, अपने देश और अपने भाई के लिए मरना अधिक पसन्द करूँगा।
*विभीषण, तू रामभक्त है, तू नैतिकता के साथ है, इसके लिए तू युगों-युगों तक धर्मात्मा कहलायेगा किन्तु राम का साथ देकर तू न केवल भ्रातद्रोहि हो गया है अपितु देशद्रोही और कुलद्रोही भी बन गया है। अगर लंकेश की हार हुई तो यह जान ले कि समस्त ऐश्वर्य और आनन्द के पश्चात भी तू सुखी नहीं रहेगा, मैं मरकर भी अमर हो जाऊंगा, आने वाली पीढियां मुझे सम्मानपुर्वक याद करेंगी किन्तु तू सबकुछ होने के बाद भी धिक्कारा जाएगा, सदैव अपमानित होता रहेगा। तुझ पर लगा कुलद्रोही, देशद्रोही और भ्रातद्रोहि होने का कलंक कभी नहीं मिटेगा। आने वाली पीढियां तेरा नाम भी लेना पसंद नहीं करेंगी और जब भी तेरा नाम लिया जाएगा, उसमें अपमानित करने का भाव ही होगा।*
उपरोक्त संवाद उन लोगों के लिए हैं जो विदेशों में जाकर अपने देश का अपमान कर रहे हैं, अपने राजा का अपमान कर रहे हैं, वो लोग जो हमारे दुश्मन देश में जाकर भारत का अपमान करते हैं, और भारत आकर दुश्मनों का सम्मान करते हैं। जो लोग अपने देश के संगठनों को आतंकी बताते हैं और अपने देश के बेरोजगार लोगों को आतंक का रास्ता चुनने का मार्गदर्शन करते हैं। ऐसे लोग जो दुश्मनों के गले मिलकर हमारे वीर जवानों की पीठ में छुरे भोंक रहे हैं।
हमारे राजा में कमियां हो सकती हैं, वह गलत मार्ग पर भी हो सकता है, उसके लिए हम उसका मार्गदर्शन करने का प्रयास करें, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हम विदेशों में और दुश्मन देशों में जाकर अपने राजा को अपमानित करें।
ऐसे विभीषण सत्ता तो भले ही प्राप्त कर लें, अपने को नैतिक और धर्मात्मा भी सिद्ध कर दें किन्तु आने वाली पीढियां उन्हें राष्ट्रद्रोही, देशद्रोही और भ्रातद्रोहि ही मानेगी।
विभीषण कहीं भी और कभी भी सम्मानित नहीं हो सकता, वह सदैव अपमानित ही होता रहेगा।
जय हिंद, जय भारत
वन्देमातरम
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*