“सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान” हमारा कहने वाले अल्लामा इक़बाल ने कहा था *”हिंदुस्तानी मुसलमानों को, जो संख्या में एशिया के दूसरे सभी देशों के मुसलमानों को एक साथ जोड़ने पर भी अधिक है, खुद को इस्लाम की सबसे बड़ी जायदाद मानना चाहिए. यानी ऐसे हिंदुस्तानी मुसलमानों को एकरूप होकर दुनिया भर के मुसलमानों के बीच बंधुत्व के सन्देश का वाहक मानना चाहिए।”*
इस देश में इस्लामिक कट्टरपंथी या कहिए छद्मधर्मनिरपेक्ष ताकतें लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रश्रय इसलिए नहीं देतीं क्योंकि उनका यह सोचना है कि यदि इस देश में लोकतांत्रिक मूल्यों पर कोई सरकार की स्थापना होगी तो उसमें हिन्दू बहुमत में होंगे और वे निश्चित रूप से अल्पसंख्यकों के विरुद्ध मनमाने तरीके से प्रस्ताव पारित करा देंगे.
भारत के मुसलमानों की एक दूसरी और सबसे बड़ी समस्या उनके धर्म का केंद्र भारत से बाहर विदेश में होना है। उनके धार्मिक निर्णय प्रत्यक्ष रूप से तुर्की या अन्य केंद्रों से प्रभावित होते हैं। हिन्दू धर्म पूरी तरह से भारत का अपना धर्म है और उसका केंद्र भारत में ही है। न तो वह किसी एक व्यक्ति को अपना सर्वेसर्वा या उपदेशक मानता है और न ही उसका कोई केंद्रीय चिन्ह है। इसके ठीक विपरीत इस्लाम में पवित्र भूमि, स्थान, पैग़म्बर, राज्य, व्यक्ति आदि विदेशों में थे।
हिंदुओं के तीर्थस्थल, उनके ऋषि-मुनि, महापुरुष, उनके पूर्वज और उनकी धार्मिक मान्यताएं इसी भारतवर्ष में हैं, दूसरे शब्दों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता ही सनातन हिन्दू संस्कृति है। इसलिए भारत भूमि को प्रत्येक हिन्दू नमन करता है और वन्देमातरम कहता है।
हिंदूवाद वास्तव में राष्ट्रवाद है, और वन्देमातरम राष्ट्रगान माना जा सकता है। प्रत्येक हिन्दू भारत को अपनी माँ और भारत भूमि को अपनी माँ की गोद समझता है। इसीलिए उसकी वंदना करता है।
इसके ठीक उलट मुस्लिम समाज जिन मुगलों को अपना पूर्वज मानता है वह भारत के लिए लुटेरे और आक्रांता हैं, जिस संस्कृति को वह अपनाये हुए है वह भारतीय संस्कृति के बिलकुल विपरीत है। मुसलमानों की आस्था का केंद्र विदेशों में है, उसकी तीर्थयात्रा और उसके पीर-पैगम्बर इस भारत में नहीं जन्मे बल्कि या तो विदेशों में जन्मे या फिर विदेशी भूमि से भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने आये थे।
भारत का मुसलमान नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध केवल इसलिए कर रहा है क्योंकि उसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा उनके पास इसका विरोध करने का कोई अन्य कारण नहीं है। जबकि नागरिकता संशोधन कानून में केवल उन्हीं लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है जो लोग पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किये जा रहे हैं और वहां पर अल्पसंख्यक के रूप में रह रहे हैं और 31 दिसम्बर 2014 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं।
ऐसे में यह समझना कोई कठिन नहीं है कि आज इस देश में कट्टरपंथी ताकतों द्वारा जो हालात पैदा किये जा रहे हैं, वह निश्चित रूप से उसी विचारधारा से उपजे हैं जो कि अल्लामा इक़बाल ने दी थी।