“सनातन धर्म” एवं “भारतीय संस्कृति” का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वांग्मय “वेद” माना गया है. मानव जाति के सांसारिक तथा पारमार्थिक अभुद्य हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है. ब्रह्म का स्वरूप “सत-चित-आनंद” होने से वेद को ब्रह्म का पर्यायवाची कहा गया. तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्म के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ.
सुप्रसिद्ध वेद भाष्यकार महान पंडित सायनाचार्य अपने वेदभाष्य में लिखते हैं कि “इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रंथो वेदयति स वेदः” निरुक्त कहता है कि “विदन्ति जानन्ति विद्यन्ते भवन्ति” ‘आर्यविद्द्या सुधाकर’ नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि- वेदो नाम वेदयन्ते ज्ञाप्यन्ते धर्मार्थकाममोक्षा अनेनेति व्युत्पत्त्या चतुर्वर्गज्ञानसाधनभूतो ग्रन्थ विशेषः.
‘कामन्दकीय नीति’ भी कहती है- ‘आत्मानमन्विछ’ यस्तं वेद स वेदवित. अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान का ही पर्याय वेद है.
वेद प्राचीन भारत में रचित विशाल ग्रन्थ हैं. इनकी भाषा संस्कृत है जिसे “वैदिक संस्कृत” कहा जाता है. ये संस्कृत साहित्य ही नहीं वरन विश्व साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं. वेद हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ भी हैं. वेदों को “अपौरुषेय” भी माना जाता है तथा ब्रह्म को इनका रचियता माना जाता है. वेद संस्कृत भाषा के “विद” धातु से बना है. वेद का शाब्दिक अर्थ है “ज्ञान” अथवा “जानना”. वर्तमान में विज्ञान शब्द वैसा ही चमत्कारिक है जैसा कि प्राचीनकाल में वेद शब्द था. उस समय चारों वेद विशुद्ध ज्ञान-विज्ञान एवं विद्या के द्योतक थे.
श्रुति भगवती बतलाती है कि “अनंता वै वेदाः”. वेद का अर्थ है ज्ञान. ज्ञान अनंत है, अतः वेद भी अनंत है. तथापि मुंडकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद. इन वेदों के चार उपवेद हैं- आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद और स्थापत्यवेद. जिसमें आयुर्वेद के कर्ता महर्षि धन्वंतरी, धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र, गन्धर्ववेद के कर्ता नारदमुनि और स्थापत्यवेद के कर्ता महर्षि विश्वकर्मा हैं.
-साभार “हिन्दू वेद”
नोट- कृपया लेखन में भाषा एवं शाब्दिक त्रुटी इत्यादि के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं. हमारा एकमात्र उद्देश्य युवाओं को अपनी संस्कृति और सभ्यता से परिचित कराना है.