यजुर्वेद- “यजुष” शब्द का अर्थ है “यज्ञ’. यजुर्वेद संहिता में यज्ञों को सम्पन्न कराने में सहायक मन्त्रों का संग्रह है, जिसका उच्चारण “अध्युर्यू” नामक पुरोहित किया जाता था. यह गद्य एवं पद्य दोनों शैली में है. यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान वेद हैं. इसके दो भाग हैं-(क) कृष्ण यजुर्वेद (ख) शुक्ल यजुर्वेद.
(क) कृष्ण यजुर्वेद : इसमें छंदबद्ध मन्त्र तथा गद्यात्मक वाक्य हैं. कृष्ण यजुर्वेद की मुख्य शाखाएं हैं- तैत्तिरीय, काठक, मैत्रायणी तथा कपिष्ठल.
(ख) शुक्ल यजुर्वेद : इसमें केवल मन्त्र ही हैं. इसकी मुख्य शाखाएं हैं- माध्यन्दिन तथा काणव्. इसकी संहिताओं को “वाजसनेय” के पुत्र याज्ञवल्क्य इसके दृष्टा थे. इसमें कुल ४० अध्याय हैं.
अथर्ववेद : उपर्युक्त तीनों संहिताएँ जहाँ परलोक सम्बन्धी विषयों का प्रतिपादन करती हैं, वहीं अथर्ववेद संहिता लौकिक फल प्रदान करने वाली है. “अथर्वा” नामक ऋषि इसके प्रथम दृष्टा हैं, अतः उन्हीं के नाम पर इसे “अथर्ववेद” कहा गया. इसके दुसरे दृष्टा आंगिरस ऋषि के नाम पर इसे “अथार्वान्गिरस” भी कहा जाता है. अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं-पिप्पलाद एवं शौनक. इस संहिता में कुल २० काण्ड ७३१ सूक्त तथा ५९८७ मन्त्रों का संग्रह है. इसमें लगभग १२०० मन्त्र ऋग्वेद से उद्घृत हैं. इसकी कुछ ऋचाएं यज्ञ सम्बन्धी तथा ब्रह्म विद्या विषयक होने के कारण इसे “ब्रह्मवेद” भी कहा जाता है. लेकिन इसके अधिकांश मन्त्र लौकिक जीवन से सम्बन्धित हैं. रोग निवारण, तंत्र-मन्त्र, जादू-टोना, शाप, वशीकरण, आशीर्वाद, स्तुति, प्रायश्चित, औषधि, अनुसन्धान, विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि, महात्म्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध मन्त्र तथा सामान्य मनुष्यों के विचारों, विश्वासों, अंधविश्वासों इत्यादि का वर्णन अथर्ववेद से प्राप्त होता है. आयुर्वेद के सिद्धांत तथा व्यवहार जगत की अनेक बातें इसमें हैं.
ऋग्वेद(१५००-१००० ईसवी पूर्व)- भारत की सर्वाधिक प्राचीन रचना ऋग्वेद में “ऋक” का अर्थ ‘छंदों तथा चरणों से युक्त मन्त्र’ होता है. ऋग्वेद मन्त्रों का एक संकलन (संहिता) है, जिन्हें यज्ञों के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिए ‘होत्र या होता’ ऋषियों द्वारा उच्चारित किया जाता था. ऋग्वेद की अनेक संहिताओं में से ‘शाकल संहिता’ ही उपलब्ध है. ‘संहिता’ का अर्थ संग्रह या संकलन है-
.सम्पूर्ण संहिता में दस मंडल तथा १०२८ सूक्त हैं.
.ऋग्वेद की पांच शाखाएं हैं- शाकल, वाष्कल, आश्वलायन, शांखायन तथा माण्डुक्य.
.ऋग्वेद के कुल मन्त्रों (ऋचाओं) की संख्या लगभग १०,६०० है.
.ऋग्वेद में इंद्र के लिए २५० तथा अग्नि के लिए २०० ऋचाओ (मन्त्रों) की रचना की गई है.
.ऋग्वेद का दो से सातवाँ मंडल प्रमाणिक और शेष प्रक्षिप्त माना जाता है.
.बाद में जोड़े गए दसवें मंडल में पहली बार “शूद्रों” का उल्लेख किया गया है; जिसे “पुरुषसूक्त” के नाम से जाना जाता है.
.देवता “सोम” का उल्लेख नवें मंडल में है.
.लोकप्रिय “गायत्री मन्त्र” का उल्लेख भी ऋग्वेद में ही है. यह तीसरे मंडल में है.
सामवेद (१०००-५०० ईसवी पूर्व)- “साम” का अर्थ ‘संगीत या गान’ होता है. इसमें यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मन्त्रों का संग्रह है. इन मन्त्रों को गाने वाला “उद्गाता” कहलाता था. सामवेद के दो मुख्य भाग हैं- आर्चिक एवं गाना.
.सामवेद के प्रथम दृष्टा “वेदव्यास” के शिष्य जैमिनी को माना जाता है.
.सामवेद की प्रमुख शाखाएं हैं- कौथुमीय, जैमिनीय तथा राणायनीय.
.सामवेद में कुल १५४९ ऋचाएं हैं. जिसमें मात्र ७८ ही नई हैं, शेष ऋग्वेद से ली गई हैं.
.सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जा सकता है.