ब्राह्मण समाज में इस प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप हमेशा से ही लगते रहे हैं। यजमानी के चक्कर में पंडितों के आपसी मतभेद जगजाहिर हैं, शायद इसीलिए ब्राह्मण समाज को लेकर यह कहावत प्रचलित हो गई कि “ब्राह्मण,कुत्ता, हाथी यह ना जात के साथी”
राजनीति के प्रकाण्ड पण्डित शस्त्र और शास्त्र के महाज्ञाता ब्राह्मण शिरोमणि,त्रिलोक विजयी लंकापति महाराज रावण की श्रीराम द्वारा हुई पराजय का प्रमुख कारण महाराज रावण के भाई विभीषण और जामवंत थे। बहुत कम लोग हैं जो यह जानते हैं कि जामवंत भी एक ब्राह्मण थे, स्वयं हनुमान भी एक ब्राह्मण ही थे।
ब्राह्मण किसी जाति विशेष का नाम नहीं है। बल्कि यह एक संस्कृति हैं ब्राह्मण नाम हैं संस्कारों का, जो व्यक्ति सुसंस्कृत नहीं है, संस्कारवान नहीं है, वह ब्राह्मण भी नहीं हो सकता। ब्राह्मण नाम है सकारात्मक ऊर्जा का, जिसमें सकारात्मकता नहीं है वह भी ब्राह्मण नहीं हो सकता। ब्राह्मण नाम है प्रकाश का, प्रकाश यानी ज्ञान का प्रकाश जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाला हो, अतः जो व्यक्ति स्वयं अज्ञानी है वह ब्राह्मण नहीं हो सकता। ब्राह्मण वह है जो शस्त्र एवं शास्त्र दोनों का ज्ञाता है। ब्राह्मण राजनीतिज्ञ भी है, औऱ कूटनीतिज्ञ भी है। ब्राह्मण में नेतृत्व क्षमता है, वैचारिक ओजस्विता है, औऱ वह सब गुण हैं जो किसी पूर्ण मनुष्य में होने चाहिये।
ब्राह्मण जन्म से नहीं अपितु अपने कर्म से जाना जाता है। कोई भी व्यक्ति केवल इसलिए ब्राह्मण नहीं हो सकता कि उसने किसी ब्राह्मण के घर जन्म लिया है।ब्राह्मण होने के लिए यह अनिवार्य है कि ब्राह्मणों के कर्म भी अपनाएं जाएं।
ब्राह्मण सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी एकता के सूत्र में नहीं बंधता यही ब्राह्मण समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
*अंत में मैं मनोज चतुर्वेदी शास्त्री पुत्र स्व. पण्डित सुरेश चन्द्र शास्त्री,* समस्त ब्राह्मण समाज से विनम्रतापूर्वक यह आग्रह करता हूँ कि यदि हो सके तो कृपाकर एकता के सूत्र में बंधने का प्रयास करिए और इस ब्राह्मण नामक लुप्तप्रायः प्रजाति को बचाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दीजिए।
*-एक ब्राह्मण पुत्र*