ब्राह्मणों ने सदा अवतारवाद को जन्म दिया। आज जितने भी अवतार हैं, वह सब ब्राह्मणों की ही देन हैं। सबके मन्दिर बनवाये गए, सबकी पूजा की जाती है। लेकिन क्या कोई ब्राह्मण बतायेगा कि इस देश में भगवान परशुराम के कितने मन्दिर हैं? कितने स्थानों पर उनकी पूजा की जाती है? कितने ब्राह्मणों के घरों में भगवान परशुराम की तस्वीर लगी है? जबकि ब्राह्मण अपने को श्री परशुराम का वंशज मानते हैं.
उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के पास श्री परशुराम जी का जन्मस्थल माना जाता है, (हालांकि इस विषय में विद्वानों की अलग-अलग राय है) किन्तु आजतक भी ब्राह्मण उस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मान्यता नहीं दिलवा सके। और तो और शाहजहांपुर का नाम बदलकर परशुरामपुर भी नहीं करा पाए।
श्रीराम सूर्यवंशी क्षत्रिय थे, श्रीकृष्ण यदुवंशी थे, महात्मा बुद्ध भी क्षत्रिय थे। यहां तक तो सही था।
लेकिन अब तो साईं को भी भगवान बना दिया। जिनके विषय में कहा जाता है कि वह एक मुस्लिम फ़क़ीर थे। मैंने कई ब्राह्मणों को मज़ारों पर जाते हुए और चादर चढ़ाते हुए देखा है।
33 करोड़ देवी-देवताओं के बाद भी ब्राह्मणों को हर बार एक नए अवतार को जन्म देने में आनन्द मिलता है।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी अवतारवाद का खंडन किया और वेदों की महत्ता को बताया। महात्मा बुद्ध ने भी इसी कर्मकांड और मूर्तिपूजा का विरोध किया, जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी भी इसी अवतारवाद का विरोध करते थे। लेकिन ब्राह्मणों ने उनको भी अवतार मान लिया।
आजकल ब्राह्मण साईं का गुणगान करने में लगे हुए हैं, और साईं की मूर्ति मंदिरों में भी स्थापित की जा रही है। साईं मन्दिर बनाये जा रहे हैं, और साईं पालकी, साईं संध्या आदि की जा रही है। साईं दरबार लगाए जा रहे हैं।
इससे पूर्व में बालाजी दरबार लगाये जाते थे, चिल्ला रखा जाता था।
पर कभी किसी ब्राह्मण ने परशुराम दरबार नहीं लगाया, कभी परशुराम संध्या नहीं की, कभी परशुराम पालकी नहीं निकाली। परशुराम जयंती मनाने में भी टाल-मटोल की जाती है।
कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, रामनवमी मनाई जाती है, बुद्ध जयंती मनाई जाती है, महावीर जयंती मनाई जाती है लेकिन परशुराम जयंती की कोई शुभकामनाएं भी नहीं देता। भगवान परशुराम जयंती की तो भाजपा सरकार ने छुट्टी भी कैंसिल कर दी। लेकिन कोई ब्राह्मण नहीं बोला, सब चुप्पी साध गए।
ब्राह्मण आज एससी/एसटी एक्ट का विरोध कर रहे हैं, कल मंडल कमीशन का विरोध कर रहे थे, आगे को आरक्षण का विरोध करेंगे। पर होना कुछ नहीं है, न कभी हुआ और न कभी होगा।
जो कौम अपने पूर्वजों का सम्मान नहीं करती, जो अपने ही पूर्वजों के सम्मान की रक्षा नहीं करती, जो दूसरों के गले लगती है और अपनों का तिरस्कार। उस कौम, उस समाज और उस जाति का भला 33 करोड़ देवी-देवता, सारे ग्रह और समस्त संसार के प्राणी भी नहीं कर सकते।।
*जिसके तुम वंशज हो जब उसका ही सम्मान नहीं कर सकते तो तुम खुद कैसे सम्मानित हो सकते हो।*
*-मनोज चतुर्वेदी शास्त्री*