पमुलपर्ति वेंकट नरसिम्हा राव (विशेषतः पी.व्ही. के नाम से जाने जाते है) एक भारतीय वकील और राजनेता थे, जिन्होंने 1991 से 1996 तक भारत का 9 वा प्रधानमंत्री बनकर सेवा की थी। उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था क्योकि हिंदी न बोलने वाले क्षेत्र से वे पहले प्रधानमंत्री थे, जो भारत के दक्षिण भाग में रहते थे।प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने बहुत से विभागों में काम किया था। उद्योगिक क्षेत्र में लाइसेंस राज को खत्म करने में भी नरसिम्हा राव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके कार्यो को देखकर भारत में उन्हें “भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार का जनक” भी कहा जाता है।भविष्य के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने राव की सरकार द्वारा निर्धारित की गयी आर्थिक योजनाओ को शुरू रखते हुए उनके द्वारा बताये गये उपायों का पालन भी किया था। इसके साथ ही राजीव गाँधी की सरकार द्वारा लागु किये गये लाइसेंस राज को खत्म में भी उन्होंने बहुत से कार्य किये है।
एक इतिहासिक आर्थिक बदलाव करते हुए उन्होंने ही डॉ. मनमोहन सिंह को आर्थिक मंत्री बनाया था। राव के जनादेश से ही डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया और इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड योजनाओ में भी बहुत से बदलाव किये ताकि वे देश की आरती व्यवस्था को सुधार सके।
नटवर सिंह के अनुसार, “नेहरु के विपरीत, संस्कृत भाषा में उनका गहन ज्ञान था।” नरसिम्हा के स्वाभाव से नेहरु को काफी गुस्सा आटा था। नेहरु को भारत की आध्यात्मिक और धार्मिक जड़ो का काफी ज्ञान था।भारत के ग्यारहवे राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राव का वर्णन करते हुए उन्हें बताया की वे “एक देशभक्त है जिनका ऐसा मानना है की राष्ट्र हमेशा राजनीती से बड़ा है।” राव ने 1996 में कलाम को नुक्लेअर टेस्ट करने के लिए भी तैयार किया था लेकिन उसी साल जनरल चुनाव होने की वजह से ऐसा नही हो पाया। इस टेस्ट को बाद में NDA सरकार में वाजपेयी वाली सरकार ने आयोजित किया था।
भारत के इतिहास में राव का प्रधानमंत्री कार्यकाल काफी प्रभावशाली साबित हुआ था। प्रधानमंत्री बनने के बाद वे जवाहरलाल नेहरु को मिश्रित आर्थिक प्रणाली को ही भारत में चला रहे थे और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को भी देश की मुख्य पार्टी बनाया क्योकि देश में आज़ादी के बाद से लगभग ज्यादातर समय कांग्रेस का ही राज था।
इसके बाद उत्तर प्रदेश में जब बीजेपी के कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे तब अयोध्या को बाबरी मस्जिद को गिराना भी उन्ही के कार्यकाल में हुआ था, उस समय आज़ादी के बाद यह हिन्दू-मुस्लिम के बीच हुआ सबसे बड़ा विवाद था।
2004 में दिल्ली में हार्ट अटैक आने के बाद राव की मृत्यु हो गयी थी। हैदराबाद में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। वे एक बहुमुखी चरित्र वाले इंसान थे और बहुत से विषयो में उनकी रूचि थी जैसे की साहित्य और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर। वे तक़रीबन 17 भाषाए बोलते थे।
पी.व्ही. नरसिम्हा राव एक नम्र सामाजिक इंसान थे। उनका जन्म वरंगल जिले के नारासंपेट गो में लक्नेपल्ली के पास नियोगी परिवार में हुआ था लेकिन बाद में उन्हें दत्तक ले लिया गया था और फिर वे तेलंगना के करीमनगर जिले के भीमदेवारापल्ली मंडल के वनग्र गाँव में रहने लगे थे।
उस समय तेलंगना हैदराबाद का ही एक भाग था। उनके पिता पी. सीताराम राव और माता रुक्मिनिअम्मा अग्ररियन परिवार से थी। साधारणतः वे पी.व्ही के नाम से जाने जाते है, प्राथमिक शिक्षा उन्होंने करीमनगर जिले के भीमदेवारापल्ली मंडल के कटकुरु गाँव में पूरी की थी, वहाँ वे अपने रिश्तेदार गब्बेता राधाकिशन राव के घर में रहते थे और ओस्मानिया यूनिवर्सिटी के आर्ट्स कॉलेज में बैचलर डिग्री हासिल करने के लिए पढते थे।
बाद में वे हिस्लोप कॉलेज पढने के लिए गये, जो अब नागपुर यूनिवर्सिटी के अधीन आता है। वहाँ रहते हुए उन्होंने लॉ में मास्टर डिग्री पूरी की थी।
राव की मातृभाषा तेलगु थी और मराठी भाषा पर भी उनकी अच्छी-खासी पकड़ थी। इसके साथ-साथ दूसरी आठ भाषाओ (हिंदी, ओरिया, बंगाली, गुजरती, कन्नड़, संस्कृत, तमिल और उर्दू भाषा) के साथ-साथ वे इंग्लिश, फ्रेंच, अरबिक, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन भाषा भी बोल लेते थे। अपने चुलत भाई पामुल्पर्थी सदाशिव राव थे। नरसिम्हा और सदाशिव राव दोनों ही साथ में अपने उपनाम जय-विजय के नाम से आर्टिकल लिखते थे।
नरसिम्हा राव को तीन बेटे और पाँच बेटियाँ है। उनका सबसे बड़ा बेटा पी.व्ही. रंगाराव, कोटला विजय भास्कर रेड्डी की कैबिनेट में शिक्षा मंत्री और वरंगल जिले के हनमकोंडा असेंबली चुनावक्षेत्र से दो बार MLA भी बन चुके है। उनका दूसरा बेटा पी.व्ही. राजेश्वर राव 11 वी लोकसभा (15 मई 1996 – 4 दिसम्बर 1997) में संसद के सदस्य भी थे। सिकंदराबाद लोक सभा चुनाव क्षेत्र से वे चुने गये थे।
भारतीय स्वतंत्रता अभियान के समय में नरसिम्हा राव एक सक्रीय राजनीतिक नेता थे और साथ ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य भी थे। आज भी आंध्रप्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को याद किया जाता है, क्योकि तेलंगना क्षेत्र में जमीन अधिकारों को लेकर उन्होंने बहुत से अहम बदलाव किये थे, जो प्रभावशाली साबित हुए थे। उनके कार्यकाल में जय आंध्र आंदोलन के समय राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लागु किया गया था।
1972 में उन्होंने ग्रह, सुरक्षा और विदेशी मुद्दों पर इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की कैबिनेट में राष्ट्रिय बहस भी की। इसके साथ-साथ यह भी कहा जाता है की 1982 में भारत के राष्ट्रपति पद के उम्मेदवार में जैल सिंह के साथ नरसिम्हा राव भी थे।
1991 में नरसिम्हा राजनीती से रिटायर्ड हो चुके थे। लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष राजीव गाँधी की हत्या होने के बाद उन्हें मजबूरन राजनीती में लौटना पड़ा था। उन्ही की बदौलत 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने सर्वाधिक सीटें हासिल की थी। और अब तक नेहरु गाँधी परिवार के बाहर के वे पहले प्रधानमंत्री है जिन्होंने पुरे पाँच साल तक देश के प्रधानमंत्री बनकर देश की सेवा की। साथ ही दक्षिण भारत और भारत के आंध्रप्रदेश राज्य से प्रधानमंत्री बनने वाले वे पहले इंसान थे।
जनरल चुनाव में ही राव इसके बाद हिस्सा नही ले पाए थे लेकिन नंदयाल के चुनाव में उन्होंने हिस्सा लिया था। नंदयाल के चुनाव में वे तक़रीबन 5 लाख वोटो से जीते थे। उनके इस रिकॉर्ड को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दाखिल किया गया था।
उस समय उनके कैबिनेट में शरद पवार का भी समावेश था, जो खुद डिफेन्स मिनिस्टर के रूप में प्रधानमंत्री पद के एक तगड़े उम्मेदवार थे। इसके साथ ही राजनीती के बाहर से भविष्य के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उन्होंने भारत का फाइनेंस मिनिस्टर बनाकर सभी को चौका दिया था।
इसके साथ ही उन्होंने सुब्रमणियास्वामी को विरोधी दल का सदस्य मानते हुए लेबर स्टैण्डर्ड और इंटरनेशनल ट्रेड का चेयरमैन भी बनाया। इसके बाद उन्होंने विरोधी दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को UN के जिनेवा में आयोजित मीटिंग में उपस्थित होने के लिए भी भेजा था।
मृत्यु –
9 दिसम्बर 2004 को राव को हार्ट अटैक आया था और इसके तुरंत बाद उन्हें ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस में भर्ती किया गया और भर्ती करने के 14 दिनों बाद 83 साल की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी। उनका परिवार उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करवाना चाहता था, राव के बेटे प्रभाकर ने मनमोहन सिंह को बताया भी था की, “दिल्ली ही उनकी कर्मभूमि है।” लेकिन सोनिया गाँधी के निर्णय के अनुसार उनके शव को हैदराबाद भेजा गया था।
दिल्ली में उनके पार्थिव शरीर को AICC बिल्डिंग में लाने की आज्ञा नही दी गयी थी। इसके बाद उनके शव को हैदराबाद के जुबिली हॉल में रखा गया था। उनके अंतिम संस्कार में भारत के दसवे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उपस्थित थे, और उनके साथ ग्रह मंत्री शिवराज पाटिल और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणी और डिफेन्स मिनिस्टर प्रणब मुखर्जी और फाइनेंस मिनिस्टर पी. चिदमबरम और दूसरी राजनेता भी मौजूद थे। उन्हें सम्मान देते हुए तेलंगना सरकार ने भी उनके जन्मदिन पर 2014 में तेलंगना राज्य उत्सव घोषित किया था।
साभार-http://www.gyanipandit.com/pv-narasimha-rao-biography-in-hindi/
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