1937 में सबसे पहले वे छपरौली से चरण सिंह उत्तर प्रदेश वैधानिक असेंबली के लिए चुने गये थे और फिर उन्होंने 1946, 1952 और 1967 में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया। 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पन्त की सरकार में वे संसदीय सेक्रेटरी बने और बहुत से विभागों में कार्यरत थे, जैसे की रेवेन्यु, मेडिकल, सामाजिक स्वास्थ विभाग, न्याय और सुचना विभाग इत्यादि। जून 1951 में उनकी नियुक्ती राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में की गयी और उन्होंने न्याय और सुचना विभाग का चार्ज दिया गया। बाद में 1952 में डॉ. संपूर्णानंद के कैबिनेट में वे रेवेन्यु और एग्रीकल्चर मंत्री बने। इसके बाद अप्रैल 1959 में जब उन्होंने इस्तीफा दिया तब उन्हें रेवेन्यु और ट्रांसपोर्ट विभाग का चार्ज दिया गया।
श्री सी.बी. गुप्ता की मिनिस्ट्री में वे होम एंड एग्रीकल्चर मिनिस्टर (1960) थे। श्री चरण सिंह ने श्रीमती सुचेता कृपलानी की मिनिस्ट्री में एग्रीकल्चर एंड फारेस्ट मंत्री (1962-63) रहते हुए देश की सेवा की थी। इसके बाद में उन्होंने एग्रीकल्चर विभाग को 1965 में छोड़ दिया था और 1966 में उन्होंने स्थानिक सरकारी विभागों का चार्ज दिया गया था।
कांग्रेस में विभाजन होने के बाद, वे दूसरी बार फरवरी 1970 में कांग्रेस पार्टी की सहायता से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। जबकि 2 अक्टूबर 1970 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागु किया गया था।
श्री चरण सिंह ने बहुत से पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश राज्य की सेवा की है और वहाँ के लोगो का जीत जितने में भी वे सफल हुए। चरण सिंह अपने राज्य में हमेशा से ही कठिन परिश्रम करने वाले और इमानदार नेता के रूप में पहचाने जाते है।उत्तर प्रदेश में जमीन सुधार के वो मुख्य कलाकार थे, इसके साथ-साथ उन्होंने 1939 में निष्क्रय बिल को लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिनसे ग्रामीण लोगो को काफी राहत मिली थी। उत्तर प्रदेश के मंत्रियो की पगार में भी उनका अहम योगदान रहा है। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने जमीन अधिसंपत्ति कानून 1960 को लागू करने की भी काफी कोशिश की थी।
देश के कुछ मुख्य राजनेता को भी चरण सिंह के इरादों और उनकी बातो पर भरोसा था, इसीलिए वे भी उनका साथ देने लगे थे। कहा जाता है की वे एक सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ता थे जो हमेशा ही जनता की सेवा क्र लिए तत्पर रहते थे।
साधा जीवन उच्चा विचार ही, चरण सिंह के जीवन का मुख्य उद्देश्य था और वे अपना ज्यादातर समय कुछ पढने या लिखने में ही व्यतीत करते थे। राजनेता होने के साथ-साथ वे बहुत सी किताबो के लेखक भी है, उनकी किताबो में ‘जमीनदारी का समापन, ’सहकारी खेती का एक्स-रे’, ‘भारत की गरीबी और सुझाव’, ‘असभ्य मलिकी और कामगारों की जमीन’ जैसी किताबो का समावेश है।
साभार-http://www.gyanipandit.com/charan-singh-biography-in-hindi/