कांग्रेस और उसके चेले-चपाटे इस बात को लेकर हो-हल्ला मचा रहे हैं कि नागरिकता संशोधन कानून में मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया।
प्रश्न यह है कि किन मुसलमानों को भारत में नागरिकता देने की पैरोकारी की जा रही है। शिया, अहमदिया या रोहिंग्या।
सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि मौहम्मद अली जिन्ना, जो कि पाकिस्तान का संस्थापक था, एक शिया था। जिन्ना का जन्म जिस परिवार में हुआ था वह एक शिया उप-सम्प्रदाय है, बाद में जिन्ना ने अशारिया सम्प्रदाय अपना लिया था जो सबसे बड़ा शिया उप-सम्प्रदाय है। दूसरा मुस्लिम नेता राजा मौहम्मद आमिर अहमद खान जिसने पाकिस्तान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, का भी ताल्लुक़ शिया सम्प्रदाय से था।
पाकिस्तान बनवाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला हज़रत मिर्ज़ा बशीरुद्दीन महमूद अहमद उस वक्त अहमदिया मुसलमानों का सबसे बड़ा इमाम था। और दूसरा अहमदिया नेता मुहम्मद जफरुल्ला खान था।
इस इमाम बशीरूद्दीन के इस्लामिक कट्टरपन्थ का जुनून इस हद तक था कि उसने कहा था कि “पाकिस्तान तो केवल एक शुरुआत है, असल मकसद तो इस्लामिस्तान बनाना है”.
अहमदिया समुदाय के लोग स्वयं को मुसलमान मानते व कहते हैं परंतु अहमदिया समुदाय के अतिरिक्त शेष सभी मुस्लिम वर्गों के लोग इन्हें मुसलमान मानने को हरगिज तैयार नहीं। इसका कारण यह है कि इस समुदाय के लोग अपनी ऐतिहासिक मान्यताओं, परंपराओं व उन्हें विरासत में मिली शिक्षाओं व जानकारियों के अनुसार हज़रत मोहम्मद को अपना आख़िरी पैगम्बर स्वीकार नहीं करते। इसके बजाए इस समुदाय के लोग मानते हैं कि नबुअत (पैगम्बरी ) की परंपरा रूकी नहीं है बल्कि सतत जारी है। जबकि इस्लाम में पैगम्बर मोहम्मद ख़ुदा के भेजे हुए अन्तिम पैगम्बर माने जाते हैं।
अहमदिया आंदोलन के अनुयायी गुलाम अहमद (1835-1908) को मुहम्मद के बाद एक और पैगम्बर (दूत) मानते हैं। अहमदिया सम्प्रदाय अपने वर्तमान सर्वोच्च धर्मगुरु को नबी के रूप में ही मानते हैं।
इन धार्मिक मान्यताओं में भेदभाव के चलते पाकिस्तान के सुन्नी कट्टरपंथी मुसलमानों ने 1974 में संविधान में संशोधन करके अहमदिया मुसलमानों को ग़ैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था।
यहां यह उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा भी खुद एक अहमदिया मुसलमान हैं।नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुल सलाम पाकिस्तान के पहले और अकेले वैज्ञानिक हैं जिन्हें फिज़िक्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है, वह एक अहमदिया थे।
शिया-सुन्नी का भेद तो जगज़ाहिर है। जहां तक रोहिंग्या मुसलमानों का प्रश्न है, तो वह मूलतः बांग्लादेश के निवासी हैं, और ख़ुद बांग्लादेश उन्हें अपने यहां शरण देने को तैयार नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान तो रोहिंग्या को फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते हैं।
अंतिम प्रश्न यह भी है कि अगर किसी इस्लामिक देश में मुसलमानों का उत्पीड़न किया भी जा रहा है, तो फिर वह भारत जैसे हिन्दू राष्ट्र (भारत के कांग्रेसियों के कथनानुसार) में ही क्यों आना चाहता है? इस दुनिया में 56 इस्लामिक देश हैं वहां क्यों नहीं चला जाता? क्या भारत धर्मशाला है, या खाला का घर।