अंबेडकर का भारत को देखने का बिल्कुल ही अलग नजरिया था। वे पूरे देश को अखंड देखना चाहते थे, इसिलए वे भारत के टुकड़े करने वालों की नीतियों के जबर्दस्त आलोचक रहे। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर भारत विभाजन के प्रबल विरोधी थे. भारत को दो टुकड़ों में बांटने की ब्रिटिश हुकूमत की साजिश और अंग्रेजों की हां में हां मिला रहे गाँधी, नेहरु और जिन्ना तीनों ही भारतीय नेताओं से वे नाराज थे. अंबेडकर का मानना था कि देश को दो भागों में बांटना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है और ऐसे विभाजन से राष्ट्र से ज्यादा मनुष्यता का नुकसान होगा। उनका यह भी मानना था कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाते हुए ऐसा कदम उठा रही है। अपनी पुस्तक “थॉट्स ऑन पाकिस्तान” में उन्होंने पूरी कांग्रेस और मुस्लिम लीग को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
वे दलितों के लिए भारत को ही उपयुक्त मानते थे और उनका कहना था कि “यदि भारत का बँटवारा मज़हबी आधार पर हो रहा है तो जरूरी है कि कोई भी मुसलमान भारत में ना रहे और पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं को भी भारत आ जाना चाहिए, वर्ना समस्याएं बनी रहेंगी.”
कांग्रेस ने हरसंभव यह प्रयास किया था कि अंबेडकर को उस उच्च सदन की सदस्यता न मिल सके, जो भारत का संविधान बनाने वाला था. संविधान सभा में 296 सदस्य थे, जिनमें से 31 दलित थे. ये सभी प्रांतीय विधानमंडलों द्वारा चुने गए थे. अंबेडकर के गृह प्रदेश बॉम्बे प्रेसिडेन्सी ने उन्हें नहीं चुना था, वे चुनाव हार गए थे. इसके बावजूद, अंबेडकर ने हार नहीं मानी और उन्होंने कलकत्ता जाकर बंगाल विधान परिषद के सदस्यों का समर्थन हासिल करने का प्रयास किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. नतीजन, वे दिल्ली वापस लौट गए. जोगेंद्र नाथ मंडल पहले से ही अंबेडकर की लेखनी, उनकी विद्वता और दलितों के लिए कार्यों को लेकर उनके प्रशंसक थे. जब उन्हें अंबेडकर की तत्कालीन स्थिति की भनक लगी तो उन्होंने तुरंत अंबेडकर को बंगाल के जैसोर-खुलना चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया. जोगेंद्र नाथ मंडल, डॉ. अंबेडकर की उम्मीदवारी के प्रस्तावक बने, कांग्रेस एम.एल.सी. गयानाथ बिस्वास समर्थक और मुस्लिम लीग ने इस चुनाव में अम्बेडकर को नैतिक समर्थन दिया. फिर चुनाव हुए, नतीजे आये और डॉ. अंबेडकर के संविधान सभा में जाने का रास्ता साफ हो गया.
लेकिन इस बीच कांग्रेस ने सियासी छलावा करते हुए जिन जिलों से अंबेडकर संविधान सभा के लिए चुने गए थे उन जिलों को पाकिस्तान को दे दिया. दरअसल विभाजन की योजना के तहत इस बात पर सहमति बनी थी कि जिन इलाकों में हिंदुओं की आबादी 51 फ़ीसदी से अधिक है उसे भारत में रखा जाएगा और जहां मुस्लिम 51 फ़ीसदी से अधिक है उन्हें पाकिस्तान को दे दिया जाएगा. लेकिन कांग्रेस ने अपने घमंड को देश से ऊपर रखते हुए, अंबेडकर ने जहाँ से चुनाव जीता था उन जिलों में 71% हिंदु आबादी होने के बावजूद पाकिस्तान को दे दिए. इतिहास में रूचि रखने वालों का मानना है कि “जवाहरलाल नेहरू ने अंबेडकर के पक्ष में वोट देने की सामूहिक सज़ा के तौर पर इन सभी चार ज़िलों को पाकिस्तान को दे दिया था.” अब तकनीकी रूप से अंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए और भारतीय संविधान सभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. पाकिस्तान बनने के साथ ही बंगाल अब विभाजित हो गया था और संविधान सभा के लिए पश्चिम बंगाल में नए चुनाव किए जाने थे. जब यह स्पष्ट हो गया कि अंबेडकर अब संविधान सभा में नहीं रह सकते तब उन्होंने सार्वजनिक स्टैंड लिया कि वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे. इसके बाद ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें जगह देने का फ़ैसला किया. इस बीच बॉम्बे के क़ानून विशेषज्ञ एम.आर.जयकर ने संविधान सभा से इस्तीफ़ा दे दिया था जिनकी जगह को जी.वी.मावलंकर ने भरा. कांग्रेस का इरादा था कि मावलंकर को संविधान सभा का अध्यक्ष तब बनाया जाएगा जब 15 अगस्त 1947 से यह भारत के केंद्रीय विधायिका के तौर पर काम करने लगेगा. लेकिन फिर कांग्रेस पार्टी ने फ़ैसला किया कि जयकर की खाली जगह अंबेडकर भरेंगे.
विशेष नोट- इस लेख के कुछ अंश “हिंदी.द आर्टिकल” में प्रकाशित लेख https://hindi.thearticle.in/hindustan/jogendra-nath-mandal-pakistan/
लेखक अभिषेक सिंह रावत, से साभार ली गई हैं.